सोमवार, मार्च 02, 2009

शिकंजे में भू-माफिया


सुरूर पर सख्ती के बाद अब भू-माफिया गहलोत के निशाने पर हैं। सरकार ने भू-उपयोग परिवर्तन संबंधी नियमों में फेरबदल कर जमीन के दलालों के जमींदोज करने की तैयारी कर ली है। कितनी कारगर होगी उनकी ये मुहिम। एक रिपोर्ट!

शराब माफिया पर नकेल कसने के बाद अशोक गहलोत ने भू-माफिया पर शिकंजा कसने की कवायद शुरू कर दी है। सरकार ने नई आवासीय योजनाओं के लिए 90 बी से पूर्व ली जाने वाली एनओसी की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। नई व्यवस्था के तहत अब यदि कोई डवलपर जमीन खरीदना चाहता है तो वह 5 हजार रुपए प्रति एकड़ या 2 लाख रुपए जमा करवाकर तकनीकी जानकारी ले सकता है। अब 90 बी, मानचित्र अनुमोदन और भू-परिवर्तन के लिए एक बार में ही आवेदन लिए जाएंगे और पूरी कार्रवाई एक साथ चलेगी। इसके लिए 60 और 120 दिन की अवधि तय की गई है। पहले भू-उपयोग परिवर्तन होगा, फिर 90 बी की कार्रवाई होगी और आजरी 15 दिन में नक्शे जारी कर दिए जाएंगे।
वसुंधरा सरकार के समय 90 बी भारी धांधलियां हुई थीं। इस नियम की आड़ में भू-माफियाओं ने जमकर मौज मनाई और अनाप-शनाप भू-उपयोग परिवर्तन कराए। दरअसल, पुरानी व्यवस्था में अनगिनत कमजोर कडिय़ां थीं जिनका डवलपर्स ने बेजां इस्तेमाल किया। खुलेआम भ्रष्टाचार हुआ और हजारों एकड़ जमीन उपयोग परिवर्तन कराया गया। भ्रष्टाचार की शुरुआत एनओसी लेने की प्रक्रिया से ही शुरू हो जाती थी। एनओसी स्थानीय निकाय या राज्य सरकार द्वारा जारी की जाती थी। एनओसी लेने के बाद डवलपर को 90 बी, भू-उपयोग परिवर्तन और मानचित्र अनुमोदन के लिए आवेदन करना होता था। ये आवेदन एक साथ न होकर अलग-अलग किए जाते थे। एक ही मामले की फाइल बार-बार सरकार के पास जाने से समय तो ज्यादा लगता ही था। भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी बढ़ जाती थी। ज्यादा गफलत सरकार की ओर से मॉनीटरिंग के अभाव में होती थी। कई आवेदनों का निपटारा तो कुछ ही दिनों में हो जाता था और कई महीने तक लंबित रहते थे।
पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान में जमीनों में आए बूम पर नजर दौड़ाएं तो पूरी कहानी समझ में आ जाती है। हालांकि यह बूम पूरे देश में ही आया था, लेकिन वसुंधरा सरकार की ओर से बरती गई शिथिलता के चलते राज्य के बाहर के डवलपर्स और उद्योगपतियों के लिए राजस्थान पसंदीदा जगह बन गया। इसकी वहज अन्य राज्यों सीमावर्ती राज्यों के मुकाबले यहां जमीन की दरें काफी कम होना व क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य होने के कारण यहां जमीन की कोई कमी नहीं होना भी रहा। धीरे-धारे यहां भी जमीन के भाव आसमान छूने लगे। फिर भी जमकर खरीद-फरोख्त हुई। हालात यह हो गए कि बड़े शहरों के कई किलोमीटर तक के दायरे में एक एकड़ जमीन भी किसानों के पास नहीं बची। यहीं स्थिति नेशनल हाइवे के किनारे भी है। यहां की भी ज्यादातर जमीन डवलपर्स ने खरीद ली। मामला जमीन खरीदने तक ही सीमित रहता तो ठीक था, लेकिन भू-उपयोग परिवर्तन को लेकर गजब की आपाधापी मच गई। खुले तौर पर भ्रष्टाचार हुआ। और देखते-देखते हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि आवासीय योजनाओं मे तब्दील हो गई। जहां न तो कोई सड़क थी और न ही कोई आधारभूत सुविधा।
पुरानी व्यवस्था आवासीय कॉलोनी विकसित करने वाले डवलपर्स लोगों को 90 बी की जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं थे। कुई डवलपर्स तो भू-परिवर्तन हुए बिना ही आवासीय योजनाओं के भ्रामक विज्ञापन जारी कर देते थे। लोग इन्हें देखकर राशि जमा करा देते थे, लेकिन बाद में उन्हें कब्जा नहीं मिलता था। अब ऐसा करने पर डवलपर्स एवं निजी खातेदारों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की जाएगी। गहलोत सरकार ने बड़े स्तर पर होने वाली धांधलियों को रोकने के लिए नया मास्टर प्लान मंजूर होने के बाद 2 साल तक राज्य सरकार की अनुमति के बिना भू-उपयोग परिवर्तन नहीं करने का निर्णय लिया है। सरकार आगामी 2-3 सालों में सभी 105 शहरों के मास्टर प्लान तैयार कर लेगी। जिन शहरों के मास्टर प्लान तैयार हो रहे है उनके ड्राफ्ट 30 जून तक प्रकाशित हो जाएंगे। एक अन्य बड़े कदम के तहत सरकार ने रूरल बैल्ट में भू-उपयोग परिवर्तन पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है। यह रोक इकोलॉजिकल व पेराफेरी क्षेत्र में भी लागू की गई है।
सरकार ने निजी योजनाओं में प्रोवीजल पट्टे और कब्जा पत्र जारी करने के लिए प्रारूप भी तय कर दिए हैं। अब स्थानीय निकाय भू- उपयोग परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होने पर 10 हजार और गैर आवासीय योजना में 4 हजार वर्ग मीटर तक के पट्टे जारी करने का अधिकार दे दिया है। कार्य का विकेन्द्रीकरण करते हुए सरकार ने 25 हजार वर्ग मीटर जमीन तक के भू-उपयोग परिवर्तन का अधिकार राज्य स्तरीय समिति और 1500 वर्ग गज तक स्थानीय निगम को दे दिया है। नगरीय विकास मंत्री के पास 25 हजार वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन के मामले ही जाया करेंगे। लोगों को होने वाली परेशानियों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने बिना संपर्क सड़कों के 90 बी की कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया है। अब 5 एकड़ की आवासीय योजना में 40 फीट, 10 एकड़ में 60 फीट, 50 एकड़ में 100 फीट एवं इससे अधिक में 100 फीट चौड़ी सड़क होना जरूरी है। इस पूरी व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सरकार ने कोड नंबर सिस्टम बनाया है। आवेदक कोड नंबर के माध्यम से वेबसाइट या नागरिक सेवा केन्द्र पर अपने प्रकरण की प्रगति देख सकेगा। कुल मिलाकर सरकार ने एक प्रभावी व पारदर्शी व्यवस्था लागू की है उम्मीद है इससे भू-माफियाओं का सफाया होगा।

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