रविवार, मार्च 01, 2009

जादूगर की जय हो... (होली स्‍पेशल)


स्लमडॉग मिलियनेयर ने आठ ऑस्कर क्या जीते अचानक ही पुरस्कारों की डिमांड बढ़ गई। लॉस एंजिल्स में जय हो... की गूंज से अपने दिग्गज तो पगला ही गए। बोले, जिंदाबाद-जिंदाबाद बहुत हो चुका अब तो जय हो... का जमाना है। कैसे भी करो, पर जय हो... का जुगाड़ करो। दोनों ने खूब माथापच्ची की तो आखिर में एक आइडिया जम गया। ऑस्कर सरीखे एक कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार हो गई। बस एक अंतर रहा यहां पुरस्कार की एक ही कैटेगरी रखी गई। इसके पीछे उनका तर्क था, 'ज्यादा श्रेणियों से बादशाहत बंट जाती है।'
पुरस्कार के लिए एंट्री आने लगीं। सबसे पहले 'महारानी' ने दावेदारी जताई। बोलीं, यह अवॉर्ड तो बना ही मेरे लिए हैं। एक से बढ़कर एक कारनामे किए हैं मैंने। सब सूखा-सूखा चिल्लाते रहते थे। मैंने नदियां बहा दीं। गली-गली में खुलवा दीं। आखिर दवा-दारू पर इतनी बंदिश क्यों? लोग बहकेंगे नहीं तो सरकार कैसे चलेगी? हाथ वाली पार्टी वादों से बहकाती थी, हमने सुरूर में बहका दिया। लीक से हटकर काम किया मैंने, एकदम ओरिजिनल। और हां, विकास तो बेहिसाब हुआ मेरे जमाने में। अब हमारा स्टेट बीमारू नहीं रहा। लोगों की सेहत पर आप ध्यान न दें, उन्हें तो मामूली नजला-जुकाम है। पद को गरिमा दिलाने का काम भी मेरे जमाने में हुआ। वर्ना पहले यूं ही कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा मिलने चला आता था। लोगों के काम से क्या है? उसी से मिलो जो अपने काम का है।
महारानी काम गिना ही रही थीं कि 'बाबोसा' बोले पुरस्कार के असली हकदार तो हम हैं। महारानी का क्या है, इन्हें तो बनाया ही हमने है। हमारी नर्सरी में ही ये पली-बढ़ी हैं। हमारा निर्देशन नहीं होता तो कब का कोई भी पटकनी दे चुका होता। स्लमडॉग वाले निर्देशक का काम तो हमारे सामने कुछ भी नहीं है। उसने तो कहानी में किसी को करोड़पति बनाया है पर पर हमने तो यदि किसी कांच पर भी हाथ रख दिया तो वो कोहीनूर बन गया। यानी हम हुए किंगमेकर। वैसे हम किंग भी रहे हैं। उपराष्ट्रपति रहे और राष्ट्रपति बनते-बनते रह गए। तीन बार सीएम बनकर भी दिखाया। वो भी बिना पूरे बहुमत के। जोड़-तोड़ की राजनीति क्या होती है? पहले यहां जानता कौन था? सब हमने सिखाया।
बाबोसा आगे कुछ और बोलते उससे पहले ही 'जादूगर' मोर्चे पर आ गए। बोले, हमारा दावा एकदम धांसू है। हम धारावी की झोपड़पट्टी से भी कठिन परिस्थितियों यानी रेत के धोरों से निकल कर आगे बढ़े हैं। इस दौड़ में कई दावेदार थे, लेकिन हमने सबको पछाड़ दिया। गजब के एथलीट हुए ना हम। ऊंचाई पर पहुंच कर भी हम जनता को नहीं भूले हैं। हम तो जनता के मुनीम हैं। अब पिछली बार खजाना खाली था तो हम क्या करें? गलतियों से सीखने का गुण भी हमारे अंदर है। पिछली बार कर्मचारियों और जाटों को नाराज करने की गलती की थी, इस बार नहीं करेंगे। भगवान को भी नाराज नहीं होने देंगे, पिछले राज के चार अकाल अभी तक याद हैं। लिहाजा अभी से चोखट चूमना चालू कर दिया है। और हां, हमारे आज्ञाकारी होने के भी नंबर देना। हम दस जनपथ की एक भी बात नहीं टालते हैं।
जादूगर की बातें सुनते-सुनते गुस्से से लाल-पीला हुआ एक शख्स भी अपना दावा जताने आ धमका। वह एक वोट, एक वोट... से आगे कुछ बोल पाता इससे पहले ही ज्यूरी ने फैसला तैयार कर दिया। फैसला सुनाया गया, 'महारानी जिन कारनामों के दम पर दावा जता रही हैं, उन्हीं से वे मात खा गईं। बाबोसा न तो अब किंग रहे और न किंगमैकर और एक वोट से हारने वाले तो इस अवॉर्ड के लिए क्वालिफाई ही नहीं करते हैं। सो जय हो अवार्ड गोज टू जादूगर...।' पुरस्कार की घोषणा होते ही श्वेत-धवल कुर्ता-पायजामा पहने जादूगर स्टेज पर आते हैं तो सीधे दस जनपथ से दूधिया रोशनी का पुंज उनके ऊपर आकर गिरता है। धीरे-धीरे जादूगर की जय हो... गाने वालों का स्वर तेज होने लगता है। निराश मुद्रा में बाहर निकलते हुए महारानी और बाबोसा की नजरें मिलती हैं तो दोनों एक साथ बोलते हैं जय हो... पीछे से एक वोट से हारने वाला शख्स पूछता है, किसकी?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें