गुरुवार, दिसंबर 03, 2009

चिंतन से आगे


गहलोत सरकार की ओर से दो दिन के चिंतन के बाद की गई घोषणाएं सुशासन के स्वप्न को साकार करने में मददगार साबित हो सकती हैं, बशर्ते इन पर ईमानदारी से अमल हो। यह अच्छी बात है कि सरकार अपने एक साल के कामकाज की समीक्षा कर रही है, लेकिन इसकी सार्थकता खामियों को दुरुस्त करने की दिशा में पहल करने पर ही है। सरकार ने गांव, गरीब और किसान को केंद्र में रखते हुए हर क्षेत्र में विकास का इरादा जाहिर किया है। भले ही इसका मकसद पंचायत चुनावों में मतदाताओं का लुभाना हो, लेकिन इनके दम पर राज्य में विकास को गति तो दी ही जा सकती है। अच्छा काम कर राजनीतिक लाभ हासिल करने में बुराई ही क्या है? सरकार की ओर से की गई घोषणाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण 'नई कृषि नीतिÓ बनाने का फैसला है। राज्य में किसान जिस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं, उन्हें देखते हुए लंबे समय से पृथक कृषि नीति की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। देर से ही सही सरकार ने किसानों की सुध तो ली। इस घोषणा से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि सरकार इसमें ऐसे उपायों को शामिल करे, जिससे किसानों को अपना जीवन त्रासद नहीं लगे। हर गांव के लिए अलग मास्टर प्लान बनाने का निर्णय भी अपने आप में ऐतिहासिक है। जनसंख्या की बढ़ती रफ्तार को देखते हुए गांवों का नियोजित विकास समय की मांग है। मास्टर प्लान बनने से गांवों की बसावट तो व्यवस्थित होगी ही, पानी के निकास की भी समुचित व्यवस्था होगी। निजी अस्पतालों में गरीबों के ऑपरेशन की घोषणा कर सरकार ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि राज्य में इलाज की कमी की वजह से किसी की मौत नहीं हो।
सरकार ने नगरीय विकास की प्रतिबद्धता को भी दोहराया है। हर शहर के लिए 'सिटी डवलपमेंट प्लानÓ बनाने की घोषणा बेतरतीब ढंग से बढ़ रहे शहरों को नियोजित करने में कारगर साबित हो सकती है। अवैध रूप से विकसित हो रही कॉलोनियों पर लगाम कसने के लिए 'नई टाउनशिप पॉलिसीÓ की घोषणा भी एक स्वागतयोग्य कदम है। इससे न केवल भूमाफियाओं पर लगाम कसेगी, बल्कि शहरों को योजनाबद्ध ढंग से विकसित करने में भी मदद मिलेगी। सरकार 26 जनवरी से 'प्रशासन शहरों के संगÓ अभियान भी शुरू करने जा रही है। यह एक सफल प्रयोग है, जिसमें आम जनता को छोटे-छोटे कामों के लिए दफ्तरों में चक्कर नहीं काटने पड़ते। क्या सरकार हमेशा के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं कर सकती कि लोगों को प्रशासन एक ही स्थान पर सहज रूप से उपलब्ध हो जाए? शहरों में ही नहीं, गांवों में भी ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि प्रशासन गांवों से ही सबसे अधिक दूर होता है। पटवारियों और ग्रावसेवकों को मोबाइल देने से संवाद जरूर कायम होगा, लेकिन महज इससे दूरी पटने वाली नहीं है। दो दिन के गहन चिंतन-मनन के बाद लोकलुभावन घोषणाएं करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना होगा कि इन्हें पूरा नहीं करना आत्मघाती साबित होता है। जनता वोट की चोट से एक बार में ही हिसाब बराबर कर लेती है। सरकार का मुखिया होने के नाते यह उनकी जिम्मेदारी है कि वह मंत्रियों और अधिकारियों को इन घोषणाओं को मूर्त रूप देने के लिए पाबंद करें। सिर्फ उनके जवाबदेह बनने से काम नहीं चलेगा, सरकार से जुड़े हर शख्स की जिम्मेदारी तय करना भी उन्हीं का काम है। जब तक यह नहीं होगा न तो चिंतन का कोई अर्थ है और न ही घोषणाओं का।

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