शनिवार, मार्च 07, 2009

जाति की जय हो


सूबे की सियासत में फिर जाति का जोर दिखाई दे रहा है। अशोक गहलोत ने लोकसभा चुनाव की घोषणा होते-होते कांग्रेस की कास्ट केमिस्ट्री दुरुस्त कर दी है। पार्टी की ओर से जातियों को जुटाने के ये जतन टारगेट-25 के करीब पहुंचने के लिए किए जा रहे हैं। कितनी सफलता मिलेगी इन्हें, एक रिपोर्ट!

वसुंधरा राजे 2003 के विधानसभा चुनावों में राजपूतों की बेटी, जाटों की बहू और गुर्जरों की समधन के तौर पर मैदान में उतरी थीं। रिश्तों की इस जुगलबंदी के दम पर ही उन्होंने राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिलाने का ऐसा कारनामा कर दिखाया जो भैरों सिंह शेखावत सरीखे दिग्गज नेता भी नहीं कर पाए। लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव में महारानी की कास्ट केमिस्ट्री गड़बड़ा गई और वे मात खा गईं। वसुंधरा राजे तो अभी तक हार के इस सदमे से उबर नहीं पाई हैं, पर सूबे के नए सरदार अशोक गहलोत ऐसी स्थिति आने से पहले ही चौकस हो गए हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव में पार्टी को 'टारगेट-25' के आस-पास पहुंचाने के लिए सुशासन के सपने को किनारे कर सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया है। प्रशासनिक फेदबदल और मंत्रिमंडल विस्तार में गहलोत ने वरिष्ठता, योग्यता और क्षमताओं को ताक पर रखते हुए राजस्थान की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले चारों प्रेशर गु्रप्स जाट, मीणा, गुर्जर और राजपूतों के अलावा अन्य जातियों को भी संतुष्ट करने की कोशिश की है। लगता है जनता के मुनीम और सॉशल ऑडिट की बात करने वाले गहलोत को भी अब सियासत में सफल होने के लिए जाति की जय बोलने में ही समझदारी दिखाई देने लगी है।
अशोक गहलोत सरकार ने बड़े प्रशासनिक फेरबदल के तहत राज्य की मुख्य सचिव के रूप में महिला आईएएस अधिकारी कुशल सिंह को नियुक्त किया है। उनके इस निर्णय को जाटों को खुश करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। इसके लिए 1973 बैच के आईएएस अधिकारी परमेश चंद्र की दावेदारी को भी सरकार ने दरकिनार किया। कुशल सिंह 1974 के बैच की आईएएस हैं। हालांकि राज्य में वरिष्ठता को दरकिनार करने का यह पहला मौका नहीं है। राज्य की पहली महिला मुख्य सचिव बनीं कुशल सिंह को वरिष्ठ कांग्रेसी व जाट नेता परसराम मदेरणा का करीबी माना जाता है। वे मुख्य सचिव बनने के बाद मदेरणा का आशीर्वाद लेने भी गईं। कुशल सिंह को मुख्य सचिव बनाए जाने के अलावा रामलाल जाट को राज्य मंत्री बनाया गया है। अब गहलोत मंत्रिमंडल में जाट मंत्रियों की संख्या चार हो गई है। जाट राज्य की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये आठ से दस सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। वैसे जाट कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं, लेकिन 2003 के विधानसभा चुनावों में इन्होंने भाजपा की ओर रुख कर लिया था। इसके पीछे दो वजह रहीं, पहली तो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल करने का ऐलान किया था और दूसरी कांग्रेस के ही कई नेताओं ने अशोक गहलोत को जाट विरोधी नेता करार दे दिया था। गहलोत को जाटों की नाराजगी भारी पड़ी थी और वे सत्ता से बाहर हो गए। हालांकि धीरे-धीरे जाटों का भाजपा से मोहभंग होने लगा। 2008 में हुए विधानसभा चुनावों में जाटों ने कांग्रेस का साथ तो दिया, लेकिन पहले जितनी सक्रियता से नहीं। गहलोत चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव में जाट पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में आ जाएं।
राजस्थान पुलिस का मुखिया बदलकर गहलोत सरकार कास्ट केमिस्ट्री दुरुस्त करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ी है। 1976 बैच के आईपीएस हरीश चंद्र मीणा को राज्य का नया डीजीपी बनाया है। मीणा को यह नियुक्ति आईपीएस एस.एस. गिल, पी.के. तिवारी और के.एस. बैंस की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर दी गई है। मीणा को डीजीपी बना गहलोत ने कई हित साधे हैं। पहला तो मीणाओं का हिमायती होने का मैसेज दे दिया और दूसरा नमोनारायण मीणा की संभावित नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया है। गौरतलब है कि सूबे के नए डीजीपी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री नमोनारायण मीणा के छोट भाई हैं। नमोनारायण मीणा इन दिनों सियासी संकट में घिरे हुए हैं। कारण और कोई नहीं बल्कि भाजपा छोड़ कांग्रेस के सामने कदमताल कर रहे किरोड़ी लाल मीणा हैं। किरोड़ी के भाजपा से हुए मोहभंग से कांग्रेस को तो फायदा हुआ है, लेकिन इससे नमोनारायण की उम्मीदें तीन-तेरह हो रही हैं। एक तो उनकी सवाई माधोपुर संसदीय सीट की परिसीमन में प्रकृति बदल गई है, दूसरे जिस दौसा सीट से वे दावेदारी जता रहे थे उस पर भी किरोड़ी आ धमके। इन दोनों मीणा नेताओं में छिड़े सियासी संघर्ष ने कांग्रेस को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। पार्टी यह तय नहीं कर पा रही है कि दौसा से किसे टिकट दिया जाए। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस किरोड़ी लाल मीणा को दौसा से और नमोनारायण मीणा को उदयपुर अथवा टोंक-सवाई माधोपुर से टिकट दिए जाने के फॉर्मूले पर विचार कर रही है। ऐसा करने से दोनों मीणा नेता संतुष्ट हो जाएंगे। ऐसा करना कांग्रेस के लिए जरूरी भी है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में छह से सात सीटों पर मीणा निर्णायक स्थिति में हैं।
गुर्जरों की अशोक गहलोत से यह शिकायत थी कि सरकार में उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है, लेकिन हाल ही में किए मंत्रिमंडल विस्तार के बाद यह काफी हद तक दूर हो गई है। गुर्जर नेता डॉ. जितेंद्र सिंह को केबीनेट मंत्री बना ऊर्जा विभाग सौंपा है। वे गहलोत के पिछले कार्यकाल में भी मंत्री रहे थे। समाज में उनकी अच्छी पकड़ है। उल्लेखनीय है कि डॉ. सिंह से पहले गहलोत मंत्रिमंडल में एक भी गुर्जर मंत्री नहीं था। गुर्जर समाज के कई संगठन निरंतर प्रतिनिधित्व देने की मांग कर रहे थे। गहलोत सरकार लोकसभा चुनाव के समय भाजपा से खिन्न चले रहे गुर्जरों को नाराज नहीं करना चाहती। हालांकि गुर्जर आरक्षण आंदोलन संघर्ष समिति के अध्यक्ष कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने कांग्रेस पर आरक्षण विधेयक को लटकाने का आरोप लगाया है और लोकसभा चुनावों में सबक सिखाने का मन बनाया है। लेकिन, कांग्रेस बैंसला के कहे पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में उनकी अपील के बावजूद गुर्जरों ने भाजपा को वोट नहीं दिए। राज्य में गुर्जर मतदाता परिसीमन के बाद तीन से चार सीटों पर हार-जीत तय करने की स्थिति में हैं। कांग्रेस लोकसभा चुनाव में गुर्जरों के एकमुश्त वोट हासिल करने के लिए भीलवाड़ा, झालावाड़, अजमेर एवं जयपुर ग्रामीण से गुर्जर नेताओं को टिकट देने की रणनीति पर विचार कर रही है।
अशोक गहलोत के राजपूत वोटों को पक्ष में करने के प्रयासों पर जाएं तो दिपेंद्र सिंह शेखावत को विधानसभा अध्यक्ष और भरत सिंह को सरकार के गठन के समय ही कैबीनेट मंत्री बना दिया गया था। सूत्रों के मुताबिक पार्टी लोकसभा चुनाव में चार से पांच राजपूत प्रत्याशियों को मैदान में उतारने की रणनीति पर काम कर रही है। गौरतलब है कि राजपूतों का एक धड़ा आरक्षण के मसले पर भाजपा से खासा नाराज है एवं कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ाना चाहता है। इसी धड़े के लोकेंद्र सिंह कालवी विधानसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस में शामिल हुए थे। वे भी लोकसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं। ब्राह्मण मतों को जोड़े रखने के मकसद से गहलोत ने मंत्रिमंडल के हालिया विस्तार में राजेंद्र पारीक को केबीनेट मंत्री बनाया है। पहले उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाने पर भी चर्चा चली थी। बृजकिशोर शर्मा सरकार में पहले से ही केबीनेट मंत्री हैं।
कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी के बढ़ते कदमों से भी खासी दिक्कतों में है। विधानसभा चुनावों में बसपा, कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही थी। लोकसभा चुनाव में इसे रोकने के लिए अशोक गहलोत ने दलित वर्ग से संबंधित बाबू लाल नागर, भरोसी लाल जाटव एवं अशोक बैरवा को मंत्री बनया है। सूत्रों के मुताबिक इनमें से भरोसी लाल जाटव और अशोक बैरवा बसपा के प्रभाव को कम करने के लिए ही मंत्री बनाया गया है। इन दोनों के विधानसभा क्षेत्रों के आस-पास बसपा तेजी से पनप रही है। हालांकि लोकसभा चुनावों में बसपा ज्यादा नुकसान करने की स्थिति में नहीं है, लेकिन फिर भी कांग्रेस कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। गहलोत अल्पसंख्यक वोटों को भी डेमेज नहीं होने देना चाहते। मंत्रिमंडल में अमीन खां को शामिल कर उन्होंने अल्पसंख्यक कोटा पूरा कर दिया है। दुरू मियां पहले से केबीनेट मंत्री हैं। वहीं गुरमीत सिंह कुन्नर को राज्य मंत्री बना सिखों को भी रिझाने की कोशिश की है। कास्ट केमिस्ट्री दुरुस्त कर लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने की कांग्रेस की यह रणनीति कितनी कारगर रहती है, इसका पता तो चुनाव परिणाम के बाद ही लगेगा।

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