शनिवार, जनवरी 16, 2010

फिर वही सुरक्षा का आवश्वासन


ऑस्ट्रेलियाई सरकार का यह ताजा भरोसा कि भारतीयों के लिए ऑस्ट्रेलिया सुरिक्षत स्थान है, तब तक महज एक कोरा बयान माना जाएगा, जब तक भारतीय नागरिकों पर हो रहे हमले पूरी तरह से थम न जाएं। वहां की सरकार इस तरह के आश्वासन पहले भी दे चुकी है, लेकिन इसके बावजूद भी भारतीय लगातार निशाना बन रहे हैं। सरकार की ओर से अब तक भारतवासियों की सुरक्षा के लिए न तो कोई विशेष प्रबंध किए गए हैं और न ही ऐसा कुछ करने के संकेत दिए हैं। उल्टे कुछ दिन पहले दो नौजवानों का कत्ल होने पर सरकार की ओर से यह बयान आया कि हत्या होना कोई नई बात नहीं है, ऐसा दिल्ली और मुंबई में भी होता है। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार को भारतीयों की पूर्ण सुरक्षा का आश्वासन देना पड़ा। दरअसल, भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलिया के शिक्षा उद्योग की रीढ़ हैं और हमलों के बाद इनकी संख्या में भारी कमी आ रही है। वहां की सरकार को भारतीयों की सुरक्षा से ज्यादा इस बात की चिंता है कि कहीं देश के शिक्षा उद्योग को करोड़ों डॉलर का चूना न लग जाए। यही वजह है कि अपने तल्ख बयानों के लिए जानी जाने वाली ऑस्ट्रेलियाई उप प्रधानमंत्री जुलिया गिलार्ड का सुर बदला हुआ है और वे यहां तक कह रही हैं, 'मैं इस बात को समझ सकती हूं कि अगर भारत में आपका परिवार है और आप अपने किसी छोटे सदस्य को दूसरे देश में भेज रहे हैं, तो आप इस बात को लेकर सबसे अधिक चिंतित होंगे कि वह वहां कितना सुरक्षित है।' क्या उनके इतने कहने भर से ही भारतीयों पर हो रहे हमले रुक जाएंगे? ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमले की कोई एकाध घटना नहीं हुई है। पिछले एक साल में भारतीय छात्रों पर 100 से ज्यादा हमले हुए हैं। पिछले दिनों हमलावरों से दो छात्रों को तो जान से ही मार डाला। इस दौरान वहां की पुलिस एकाध मौकों पर सक्रिय दिखी और कुछ हमलावरों को पकड़ा भी गया, लेकिन ऑस्ट्रलियाई सरकार यह सफाई देने में ही उलझी रही कि ये नस्लवादी हमले नहीं हैं, ये अपराध की सामान्य घटनाएं हैं, जिनमें अपराधियों ने नाइट शिफ्ट में काम करने वाले और अपने महंगे आईपॉड, मोबाइल फोन और लैपटॉप का प्रदर्शन करने वाले भारतीय छात्रों को अपना निशाना बनाया है। यह जवाबदेही से मुंह चुराने जैसा है। जिस तरह ऑस्ट्रेलियाई के शिक्षण संस्थान भारत में कैंप लगाकर शिक्षा और रोजगार के सुहाने सपने दिखाकर भारतीय छात्रों को अपने यहां बुलाते हैं, उसी तरह यह जिम्मेदारी वहां की सरकार की है कि वह उनकी सुरक्षा का भी ख्याल रखे। ऐसा करना उसके हित में भी है। इस समय ऑस्टे्रलिया में लगभग एक लाख भारतीय छात्र हैं। इनकी फीस के रूप में वहां के शिक्षण संस्थानों को हर साल सीधे-सीधे करीब दो अरब डॉलर प्राप्त होते हैं। यह रकम उनके लिए संजीवनी से कम नहीं है, क्योंकि वैश्विक मंदी के कारण भारी वित्तीय दबावों से गुजर रही सरकार ने उन्हें दिए जाने वाले अनुदान में भारी कटौती की हुई है। ऑस्ट्रेलियाई सरकार यह तो चाहती है कि विदेशी छात्रों की आमद न रुके, लेकिन उनकी सुरक्षा का सवाल उठने पर वह इसका दोष छात्रों पर ही मढ़ देती है। यदि यही रवैया जारी रहा तो ऑस्टे्रलिया के शिक्षा उद्योग का ठप होना तय है। वहां के नीति-नियंताओं को चाहिए कि वे कोरे आश्वासन देना छोड़, दूर देश से पढऩे आने वाले छात्रों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें