रफ्ता-रफ्ता समय की सीढिय़ों से गुजर गया साल 2009, छोड़ गया अपने पीछे उल्लास के अनगिनत पल। साथ ही दर्द और वेदनाओं की भी लंबी फेहरिस्त। अब हम नए साल 2010 में हैं। परंपरा रही है- बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध लेय, लेकिन बीते साल की कई घटनाओं ने हमें इतना झकझोरा कि उन्हें भुलाकर नए साल में बेहतरी की उम्मीद करना बेमानी है। ऐसे में यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि पुरानी चूकों से सबक लेते हुए आगे बढऩे का ताना-बाना बुनें। जरूरत केवल संकल्प लेने की ही नहीं, बल्कि उन पर अमल करने की भी है। वो भी बिना वक्त गंवाए, आज ही से, या यूं कहें अभी से। इन दिनों पूरा देश रुचिका मामले पर उद्वेलित है, इसलिए पहला संकल्प न्यायपालिका से जुड़ा हुआ- न्याय में देरी न हो और कानून सबको एक ही चश्मे से देखे। यह फख्र की बात है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन जिन्हें इसे सींचने का जिम्मा दिया हुआ है वे ही उजाडऩे में लगे हैं। पिछले कुछ दिनों में ही राजनेताओं ने अपने व्यवहार से कई बार शर्मसार किया, लिहाजा दूसरा संकल्प राजनीति को सही राह पर लाने के लिए- नेता सत्ता के मोह में राष्ट्रहित को तिलांजलि न दें। देश की बात चली तो सुरक्षा का मसला भी चिंताजनक है। पाकिस्तान और चीन से तो खतरा था ही तेजी से पैर पसारते नक्सलवाद ने समस्या को और बढ़ा दिया है। इसलिए तीसरा संकल्प सुरक्षा के मोर्चे पर- चौकसी इतनी चाकचौबंद हो कि परिंदा भी पर न मार पाए। सीमाओं पर ही नहीं देश के भीतर भी सुरक्षा व्यवस्था में सुधार की बहुत गुंजाइश है।
आम लोगों को हमेशा शिकायत रहती है कि प्रशासन रसूखदारों की अर्दली करता है, उसकी आवाज तो नक्कारखाने में तूती ही साबित होती है। जनता की इस पीड़ा को दूर करने का चौथा संकल्प लेना होगा- प्रशासन मुस्तैदी से रखे आम आदमी का ख्याल। बीते साल मीडिया भी खूब सवालों के घेरे में रहा। खबरों के स्तर पर हुई बहस को चुनाव के दौरान 'पेड न्यूज' के मुद्दे ने और तीखा कर दिया। पांचवां संकल्प मीडिया के लिए ही कि जिस तेजी से वह अपनी पहुंच बढ़ा रहा है, विश्वास की 'टीआरपी' भी उसी रफ्तार से बढ़े। 2009 में आम आदमी महंगाई से सबसे ज्यादा त्रस्त रहा। सरकार उपाय करने की बजाय मुद्रास्फीति के आंकड़ों में ही उलझी रही। यह स्वीकारने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए कि हमारी तरक्की की पूरी तस्वीर ही आंकड़ों में उलझी हुई है। छठा संकल्प अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में लेने की जरूरत है कि विकास आंकड़ों में ही न उलझा रहे, आमजन तक भी पहुंचे। भारतीय क्रिकेट टीम ने पिछले साल खूब धूम मचाई। टेस्ट क्रिकेट में बादशाहत कायम की। सातवां संकल्प खेल की दुनिया में कि ऐसी कामयाबी अन्य खेलों में भी मिले। मनोरंजन की दुनिया में देश ने पिछले साल खूब यश कमाया। बॉलीवुड की गूंज विदेश तक सुनाई दी। 2010 में इस स्वर को और ऊंचा करने के लिए आठवां संकल्प- हर विधा में सशक्त हो परदे की फंतासी। खुशी के हजार लम्हों के बीच स्वाइन फ्लू कहर बनकर आया। नवां संकल्प स्वास्थ्य के मोर्चे पर कि परंपरागत ढांचा तो सुधरे और कोई मर्ज देशवासियों पर भारी न पड़े। अंतिम दसवां और सर्वाधिक महत्वपूर्ण संकल्प यह कि बाकी नौ संकल्पों पर ईमानदारी से अमल हो। यदि हम ऐसा कर पाए तो देश का हर शख्स तो खुशहाल होगा ही भारत भी महाशक्ति बनने की दिशा में अग्रसर हो जाएगा।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
प्रेरक विचार!
जवाब देंहटाएंनया वर्ष हो सबको शुभ!
जाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
सार्थक संदेश!!
जवाब देंहटाएंवर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल