शनिवार, जनवरी 23, 2010

पाकिस्तान का पागलपन


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने यह कहकर एक बार फिर अपनी धूर्तता का परिचय दिया है कि वे भारत में मुंबई जैसे हमलों को रोकने की गारंटी नहीं ले सकते। उनके इस बयान पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, लेकिन इस बार उन्होंने अमेरिकी रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स के सामने यह राग अलापा है। पाकिस्तान गेट्स की मौजूदगी में यह कहने से भी नहीं चूका कि भारत ने मुंबई हमले के विश्वसनीय सुबूत उसे उपलब्ध नहीं कराए। स्पष्ट है कि पाकिस्तान ने जानबूझकर अपनी आंखों पर न केवल पट्टी बांध ली है, बल्कि फरेब को अपना हथियार भी बना लिया है। इसके संकेत इससे मिलते हैं कि वह बलूचिस्तान के आतंकवाद में भारत की कथित संलिप्तता दिखाने के लिए अमेरिका के कान भर रहा है। उसकी हरकतें काफी कुछ वैसी ही हैं, जैसी एक समय अफगानिस्तान पर कब्जा जमाए तालिबान के आतंकी शासन की थीं। एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान पागलपन दिखा रहा है। वह दिन प्रतिदिन लाइलाज होता जा रहा है। इसके लिए एक हद तक भारत भी जिम्मेदार है और रही-सही कसर विश्व समुदाय, खासकर अमेरिका ने पूरी कर दी है। भारत को इसका अहसास अच्छी तरह से हो जाना चाहिए कि पाकिस्तान की तरह से अमेरिका को भी हाल-फिलहाल सद्बुद्धि नहीं आने वाली। हालांकि यह शुभ संकेत है कि अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि मुंबई जैसा हमला हुआ, तो भारत के सब्र का बांध टूट जाएगा, लेकिन यह भी सच है कि अमेरिका पलक झपकते ही सुर बदल लेता है। अब यह आवश्यक है कि भारत पाकिस्तान से तो कड़ाई से निपटे ही, अमेरिका से भी दो टूक बात करे। अमेरिकी एजेंसियों ने कई बार यह तथ्य उजागर किया कि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई आतंकवादियों को संरक्षण और बढ़ावा दे रही है, लेकिन अमेरिका ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। वह इस बात पर गौर करने के लिए भी तैयार नहीं है कि आतंकवाद को रोकने के लिए पाकिस्तान को वित्तीय और सैन्य सहायता उपलब्ध कराए जाने के बावजूद तालिबान की ताकत में बढ़ोतरी हुई है। अमेरिका चाहता है कि अल कायदा के खिलाफ अभियान में उन्हें पाकिस्तान का सहयोग मिलता रहे, लेकिन उनका ध्यान इस बात पर नहीं है कि तालिबान अब लश्करे तैयबा जैसे संगठनों के जरिए दहशतगर्दी फैला रहे हैं। पाकिस्तान को उसके हुक्मरानों की दोहरी नीति की कीमत चुकानी पड़ रही है। इसी दोहरे रवैये ने आज ऐसी हालत पैदा कर दी है कि पाकिस्तान की सत्ता आतंकवादियों के सामने इस कदर असहाय नजर आती है। इस तेजी से फैल रही आग पर काबू पाने के लिए वहां के राजनीतिक नेतृत्व को अपनी दुविधा से उबरना होगा। वे भारत को नुकसान पहुंचाने के पागलपन में खुद को ही तबाह कर रहा है। निश्चित रूप से अमेरिका को भी अपना वह चश्मा बदलना होगा, जिससे उसे आतंकवाद सिर्फ दुनिया के उसी हिस्से में नजर आता है, जहां उसके सैनिक घिरे होते हैं। भारतीय नेतृत्व को विश्व समुदाय को सीधा संदेश देना चाहिए कि वह आखिर कब तक पाकिस्तान को माफ करता रहेगा? हमें यह साबित करना होगा कि पाकिस्तान का मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान आतंकवाद का समर्थक और संरक्षक हैं। पाकिस्तान की घेरेबंदी करने में युद्ध के अतिरिक्त अन्य सभी उपाय किए जाने चाहिए।

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