शनिवार, जनवरी 16, 2010

अब तो सरहद को संभाल लो


रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी के बाद थलसेना प्रमुख जनरल दीपक कपूर का यह कहना कि सरहद पार से बड़ी संख्या में आतंकी घुसपैठ की तैयारी में हैं, देश की सुरक्षा के सम्मुख गंभीर खतरा है, भले ही यह दावा किया जाए कि हम इनसे निपटने के लिए पूरी तरह मुस्तैद हैं। सुरक्षाबलों के तमाम दावों के बावजूद न केवल घुसपैठ बदस्तूर जारी है, बल्कि दिनोंदिन इसमें इजाफा भी हो रहा है। आखिर कड़े इंतजामों के बाद भी यह सिलसिला खत्म क्यों नहीं होता? अमूमन हर साल जिस तरह से सर्दियों में घुसपैठ बढ़ती है, उससे तो यही लगता है कि हाड कंपा देने वाली ठंड में भारतीय सीमा रक्षकों की मुस्तैदी भी ठंडी पड़ जाती है। मुमकिन है ऐसा न हो, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं है कि सरहद और खासकर जम्मू-कश्मीर में सैनिकों की तादाद कम करने की कवायद घुसपैठ बढ़ाती है। रक्षा मंत्री और थलसेना प्रमुख स्वीकार कर चुके हैं कि 2008 में जहां महज 57 आतंकियों ने घुसपैठ की थी, वहीं 2009 में 30 नवबंर तक यह आंकड़ा 110 तक पहुंच चुका है। इस अवधि के दरम्यान ही जम्मू-कश्मीर में सैनिकों की संख्या को लेकर सर्वाधिक हो-हल्ला हुआ था। तो क्या यह माना जाए कि सैनिकों की संख्या में कटौती से आतंकियों के लिए घुसपैठ का माहौल बना? राज्य में आतंकी हिंसा का स्तर घटाने में पुलिस सक्षम हुई होगी, लेकिन क्या महज इस आधार पर ही सीमा क्षेत्र में निगरानी कम कर दी जाए? सब चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल हो, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के इस सर्वाधिक संवेदनशील राज्य के एक ओर पाकिस्तान और दूसरी ओर चीन गिद्ध दृष्टि गड़ाए बैठा है। खासकर पाकिस्तान यह कभी नहीं चाहेगा कि जम्मू-कश्मीर में जिंदगी पटरी पर लौटे। यदि सूबे के तेजी से सुधरते हालात देखकर पाकिस्तान में रहकर नेटवर्क संचालित कर रहे आतंकी संगठनों की बेचैनी बढ़ रही है, तो इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उनसे और कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती, लेकिन मानवाधिकारों की दुहाई देकर सीमाओं की चौकसी कम कर देना उनका स्वागत करने जैसा है। जम्मू-कश्मीर की आवाम और उनके निजाम उमर अब्दुल्ला को यह समझना होगा कि सेना रात के अंधेरे में अपनी कार्रवाई इस बात की तस्दीक करते हुए नहीं कर सकती कि कौन घुसपैठिया है और कौन बेगुनाह। सेना की विवशता को भी समझना जरूरी है। उसकी नागरिकों से कोई दुश्मनी नहीं है। वह वहां आतंक के खात्मे के लिए तैनात है न कि आम आदमी की दुश्वारियां बढ़ाने के लिए। सैनिकों की संख्या में कटौती करने से पहले इस पहलू पर विचार कर लेना जरूरी है कि आतंकी इसका कोई फायदा तो नहीं उठाएंगे। पाकिस्तान से सटी सीमा पर ही पूरा ध्यान केंद्रित करना बड़ी भूल हो सकता है, क्योंकि चीन की चालें भी कम खतरनाक नहीं हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि भारतीय भूमि पर उसकी टेडी नजर है। चीनी हुक्मरानों ने कभी नहीं चाहा कि भारत में अमन-चैन रहे और वह तरक्की की राह पर चले। पाकिस्तान के साथ उसका गठजोड़ इसी का नतीजा है। दोनों ओर खतरा जिस तेजी से बढ़ रहा है, उससे निपटने के लिए न केवल सुरक्षाबलों की संख्या बढ़ाना जरूरी है, बल्कि उन्हें अत्याधुनिक संसाधन उपलब्ध कराना भी आवश्यक है। शातिर आतंकियों को परंपरागत संसाधन बोने साबित हो रहे हैं।

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