मंगलवार, अप्रैल 07, 2009

वाकई जादूगर!


अशोक गहलोत सियासत में भी सफल जादूगर साबित हो रहे हैं। बसपा के सभी छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर उन्होंने भाजपा से जोड़तोड़ का विकल्प छीन लिया है, किरोड़ी को कहीं का नहीं छोड़ा है और बसपा के बढ़ते कदमों को रोक दिया है। आखिर कैसे चला गहलोत का जादू? अंदर की कहानी!

सूबे में चल रही सियासी उठापठक के बीच अशोक गहलोत एक बार फिर अपने राजनीतिक कौशल का जौहर दिखाते हुए विजेता साबित हुए हैं। बहुजन पार्टी के सभी छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर उन्होंने सरकार का पांच साल का बीमा तो करा ही लिया है, डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और भारतीय जनता पार्टी को भी पटकनी दे दी है। राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या अब 102 हो गई है, यानी सरकार को स्पष्ट बहुमत मिल गया है। अब गहलोत को न तो उन्हें 'डिक्टेट' करने वाले किरोड़ी लाल मीणा की जरूरत है और न ही अन्य किसी के समर्थन की। उन्होंने सुकून से पांच साल सरकार चलाने का इंतजाम कर लिया है।
राजस्थान में पैर जमाने की कोशिश कर रही बहुजन समाज पार्टी ने पहली बार विधानसभा चुनाव गंभीरता से लड़ा था। उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनाव लडऩे तक पार्टी ने खूब मेहनत की। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती और उनकी सरकार के कई मंत्रियों ने राज्य में जमकर प्रचार किया। चुनाव परिणामों में भी इसका असर दिखा और पार्टी छह सीटें जीतने में सफल हुई। साथ ही पार्टी के उम्मीदवार 10 सीटों पर दूसरे और 71 पर तीसरे स्थान पर रहे। वैसे तो बसपा ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान पहुंचाया, पर ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही हुआ। बसपा कई सीटों पर कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही। चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस के कई आला नेताओं ने साफ तौर पर माना कि बसपा नहीं होती तो राज्य में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलता। हालांकि सरकार के गठन में कांग्रेस को कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करने पड़े। किरोड़ी लाल मीणा के समर्थन से गहलोत की राह और आसान हो गई।
गहलोत सरकार के गठन में बसपा की भी भूमिका रही। पार्टी ने सरकार को बाहर से समर्थन तो दिया, लेकिन लंबी जद्दोजहद के बाद। दरअसल, बसपा के ज्यादातर विधायक सरकार में शामिल होना चाहते थे। सूत्रों के मुताबिक पार्टी नेतृत्व की ओर से मनाही होने के बाद कई विधायकों ने कांग्रेस में शामिल होने का मन बना लिया था, लेकिन दलबदल कानून और कांग्रेस की ओर से ज्यादा तवज्जों नहीं मिलने के कारण ऐसा नहीं हो पाया। इस बीच बसपा में आपसी फूट सार्वजनिक होने लगी। प्रदेश प्रभारी व राष्ट्रीय महासचिव धर्मवीर अशोक पर पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोपों की झड़ी लग गई। बसपा विधायक दल के नेता राजेंद्र सिंह गुढ़ा सहित कई विधायक भी इसमें शामिल हो गए। उन्होंने तो यहां तक कहा कि 'धर्मवीर अशोक ने टिकटों के नाम पर 100 करोड़ रुपए डकार गए। मुझसे भी पांच लाख रुपए मांगे गए।' पार्टी के भीतर बढ़ते विवाद के बीच विधायकों ने कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ाना शुरू कर दिया। सूत्रों के मुताबिक बसपा विधायकों ने तो काफी समय पहले ही कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा जाहिर कर दी थी, लेकिन गहलोत किसी जल्दबाजी के मूड में नहीं थे।
इस दौरान लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गईं। उम्मीदवार तय करने की बारी आई तो डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर दी। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने कांग्रेस को साफ तौर पर कह दिया कि 'मेरा समर्थन चाहिए तो सात सीटों पर मेरे हिसाब से टिकट देने होंगे।' किरोड़ी की इस डिमांड से कांग्रेसी हक्के-बक्के रह गए। कई नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की, पर नहीं माने। अशोक गहलोत ऐसी स्थितियों में काम करने के आदी नहीं है। लिहाजा, वे बोल पड़े 'किरोड़ी कांग्रेस को डिक्टेट नहीं करें। वे पहले पार्टी में शामिल हों और फिर टिकटों पर बात करें।' कांग्रेस के सूत्रों की मानें तो गहलोत किरोड़ी को एक सीट से ज्यादा देने को तैयार नहीं हैं, वह भी उनके पार्टी में शामिल होने के बाद। दरअसल, किरोड़ी दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं। वे दौसा से चुनाव तो लडऩा तो चाहते तो हैं पर कांग्रेस के सिंबल पर नहीं। वे कांग्रेस में शामिल हो कर चुनाव लड़ते हैं तो दलबदल कानून के तहत उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो जाएगी। ऐसे में वे लोकसभा चुनाव हार गए तो कहीं के नहीं रहेंगे। किरोड़ी इतनी बड़ी रिस्क लेने को तैयार नहीं है।
कांग्रसी नेताओं की ओर से किरोड़ी की मान-मनौव्वल के बीच केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री नमोनारायण मीणा के एक बयान से खलबली मच गई। उन्होंने गहलोत की उपस्थिति में कहा कि 'किरोड़ी टोंक-सवाई माधोपुर से मेरा टिकट कटवाने में लगे हैं। उनका टिकट कटा तो वे किरोड़ी के प्रचार रथ को गांवों में घुसने नहीं देंगे।' नमोनारायण के इस बयान से किरोड़ी लाल पीले हो गए। उन्होंने गहलोत पर दबाव बनाने के लिए पत्नी गोलमा देवी का इस्तीफा मुख्यमत्री को भिजवाते हुए तल्ख लहजे में कहा कि 'मैं भाजपा को हराने के मकसद से कांग्रेस के साथ आया था। मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष की उपस्थिति में नमोनारायण मीणा की टिप्पणी दुर्भाग्यजनक है। कांग्रेस मुझ पर हमले करना बंद करे। मैं कांग्रेस के टिकट को ठोकर मारता हूं। उसे जो भी करना है जल्दी करे। देरी कर मुझे बदनाम नहीं करे।' किरोड़ी को पूरी उम्मीद थी कि गहलोत उनके सामने घुटने टेक देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। गहलोत ने नमोनारायण के बयान को 'एक्शन का रिएक्शन' बताते हुए किरोड़ी को पार्टी ज्वाइन करने की सलाह दे डाली।
तेजी से बदले राजनीतिक घटनाक्रम में भाजपा ने अशोक गहलोत को सत्ता से बाहर करने अवसर तलाश लिया। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक पार्टी के आला नेताओं ने किरोड़ी लाल मीणा से संपर्क कर उन्हें मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया। शर्त यह थी कि बसपा समेत सभी निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में गहलोत सरकार को गिराएं। गहलोत के जाने पर किरोड़ी सरकार बनाने का दावा पेश करें जिसे भाजपा बाहर से समर्थन दे। किरोड़ी को यह ऑफर पूरी तरह से पसंद आ गया था। हालांकि पहले भाजपा का स्थानीय नेतृत्व इस फॉर्मूले पर राजी नहीं था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के दबाव के बाद वह भी तैयार हो गया। इतना ही नहीं वसुंधरा राजे ने तो 2003 के चुनावों में अहम भूमिका निभाने वाले सुधांशु मित्तल को भी जयपुर बुला कर धनबल का खेल खेलने की पूरी तैयारी कर ली थी। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने किरोड़ी को खुश करने के लिए उनके रथ को गांवों में नहीं घुसने देने का बयान देने वाले नमोनारायण मीणा पर रासुका लगाने की मांग कर डाली। भाजपा ने चुनाव आयोग से किरोड़ी लाल और गोलमा देवी की सुरक्षा बढ़ाने की लिखित में मांग भी की।
इससे पहले कि भाजपा की यह योजना आगे बढ़ पाती, गहलोत को इसकी भनक लग गई। उन्होंने इसे एनकाउंटर करने के लिए ऐसा कदम उठाया कि सब भौचक रह गए। राज्य में बसपा के सभी छह के छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। गहलोत ने यह कदम उठा एक तीर से कई शिकार किए हैं। किरोड़ी को तो उन्होंने जमीन सुंघा दी है। किरोड़ी अब घर के रहे हैं न घाट के। सूबे के सीएम बनने का ख्बाव पालने के चक्कर में उन्होंने राज्य सरकार में मजबूत स्थित को गंवा दिया है। हालांकि वे सरकार को महज एक विधायक की हैसियत से सरकार को समर्थन दे रहे थे, पर उनकी मंत्री से ज्यादा चलती थी। स्वयं की पत्नी के अलावा परसादी लाल मीणा और रामकिशोर सैनी तो उनके कहे में चलते ही थे। गहलोत उन्हें अब पहले की बराबर तवज्जों नहीं देंगे, क्योंकि उन्हें अब सरकार चलाने के लिए किरोड़ी के समर्थन की जरूरत नहीं है। जहां तक दौसा से टिकट का सवाल है, गहलोत ने साफ कर दिया है कि किरोड़ी कांग्रेस के टिकट पर यहां से लड़ सकते हैं। कुल मिलाकर समूचे घटनाक्रम के बाद किरोड़ी स्वयं को लुटा हुआ महसूस कर रहे हैं। भाजपा भी अब उन पर उतना ध्यान नहीं देगी। भाजपा तो उन्हें गहलोत सरकार को गिराने तक यूज करने के मूड में थी। इसी बहाने किरोड़ी लोकसभा चुनाव में भाजपा की मदद भी कर देते। यदि किरोड़ी अब फिर से भाजपा का दामन थामते हैं तो घाटे में रहेंगे, क्योंकि जिस भाजपा को पिछले कई महीनों से जमकर कोस रहे थे, उसी के लिए जनता से वोट किस मुंह से मांगेंगे?
गहलोत एक ही झटके में बसपा इफैक्ट से निपटने में भी कामयाब रहे हैं। राज्य में पिछले कुछ समय से बसपा का जनाधार तेजी से बढ़ रहा था। इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को हो रहा था। बसपा के विधायकों के पाला बदलने के बाद कम से कम लोकसभा चुनावों तक तो हाथी हाथ का हुलिया नहीं बिगाड़ पाएगा। विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने से बसपा को नेताओं की कमी से जूझना पड़ेगा। लोकसभा चुनाव की तैयारियां भी बुरी तरह से प्रभावित होंगी। कई सीटों पर ये विधायक ही लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी में थे। इस पूरे मामले से भाजपा को भी सबक मिला है। पार्टी के पास आगामी पांच साल तक विपक्ष में बैठे रहने के अलावा और कोई चारा नहीं है। वैसे भाजपा को जनादेश भी यही मिला था और लोकतंत्र में जनादेश ही सर्वोपरी होता है।

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