शनिवार, दिसंबर 27, 2008

कीमती किरोड़ी

किरोड़ी लाल मीणा सूबे की सियासत के केंद्र में हैं। जहां भाजपा घर वापसी के लिए मान-मनौव्वल में जुटी है वहीं, कांग्रेस सत्कार को तैयार खड़ी है। किरोड़ी पत्ते खोलने की बजाय दोनों के बीच कदमताल कर रहे हैं। क्या होगी उनकी अगली चाल?

कथाक्रम मई 2007 से शुरू होता है। गुर्जर आरक्षण के मसले पर सरकार के रवैये से तिलमिलाए किरोड़ी लाल मीणा सीएम हाऊस जाकर वसुंधरा राजे को खूब खरी-खोटी सुनाते हैं। महारानी मौन रहती हैं। सियासत की अपनी शैली के एकदम विपरीत। आंदोलन समाप्त होता है। महारानी एक-एक की खबर लेना शुरू करती हैं। निशाने पर होते हैं किरोड़ी। उन्हें किनारे करने की रणनीति के तहत कई मीणा विधायकों को समानांतर खड़ा किया जाता है। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय के अधिकारों पर भी केंची चलती है। इस बीच गुर्जर आरक्षण आंदोलन का दूसरा दौर शुरू हो जाता है। किरोड़ी फिर सक्रिय होते हैं। सरकार पर दबाव बनाने के लिए मीणा विधायकों से इस्तीफे का आह्वान करते हुए पत्नी के हाथों खुद का इस्तीफा भिजवाते हैं। भाजपा और किरोड़ी के रिश्तों को लगी शनि की साढ़े साती यहीं समाप्त नहीं होती है। वसुंधरा के राज को जंगलराज बताते हुए मीणा समूचे सूबे का दौरा करते हैं। चुनाव का मौसम आते ही प्रदेशाध्यक्ष ओम माथुर और कोषाध्यक्ष रामदास अग्रवाल को भी लपेटे में ले लेते हैं। दोनों को टिकटों का सौदागर बताते हुए कहते हैं, 'जिनकी हैसियत वार्ड पंच का चुनाव जीतने की नहीं है वे प्रत्याशियों का चयन करते हैं।' अदावत पर आमादा किरोड़ी के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई तय होती है। टिकट काटा जाता है। विरोधियों को चुन-चुनकर टिकट बांटे जाते हैं। किरोड़ी भाजपा के खिलाफ खुली जंग का ऐलान करते हैं। परिणाम भी उनके मुताबिक आते हैं। भाजपा को एक दर्जन से ज्यादा सीटों का सीधा नुकसान। वसुंधरा सरकार की विदाई में अहम भूमिका निभाने वाले 'किरोड़ी फैक्टर' को नहीं सुलझाने की यह टीस भाजपा के किसी भी नेता के मुंह से सुनी जा सकती है।
विधानसभा चुनाव में पार्टी की खिलाफत कर मैदान में उतरने वालों में से किरोड़ी सबसे ज्यादा फायदे में रहे। खुद जीते, पत्नी गोलमा देवी को मंत्री पद मिला, समर्थक विजयी हुए और विरोधियों को करारी शिकस्त मिली। चुनाव परिणामों ने इस दिग्गज मीणा नेता के लिए संजीवनी का काम किया। कल तक उनकी सियासत समाप्त करने में जुटे भाजपाई अब उनकी मान-मनौव्वल में लगे हैं। पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले 'किरोड़ी फैक्टरÓ को सुलझाना चाहती है। पार्टी की ओर से राजेंद्र सिंह राठौड़ और एस.एन. गुप्ता लगातार किरोड़ी के संपर्क में हैं। चर्चा तो यहां तक चली थी कि मीणा को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक मीणा का घर वापसी का मन भी बना था, लेकिन प्रदेश भाजपा का शीर्ष नेतृत्व राह में रोड़ा बन गया। जहां किरोड़ी, ओम माथुर और वसुंधरा के रहते घर वापसी के मूड में नहीं है वहीं, लोकसभा चुनाव सिर पर होने की वजह से केंद्रीय नेतृत्व बदलाव नहीं करना चाहता है। राजनाथ सिंह की ओर से ओम माथुर को 'फ्री हैंड' मिलने के बाद किरोड़ी से सुलह की संभावना और कम हो गई है। माथुर ने बागियों के लिए 'प्रवेश निषेध' की नीति अपनाते हुए कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए हैं। वैसे दोनों के बीच शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। माथुर को बाहरी और थोपा हुआ अध्यक्ष कहने के बाद किरोड़ी उन्हें 'टिकटों का दलाल' तक कह चुके हैं। हालांकि माथुर ने खुले तौर पर किरोड़ी के खिलाफ कुछ नहीं बोले, लेकिन अंदरखाने सबक सिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। सूत्रों के मुताबिक महारानी तो किरोड़ी से सुलह के पक्ष में थीं पर माथुर नहीं माने। उन्हीं के कहने पर किरोड़ी का टिकट काटा गया। ऐसे में यदि वसुंधरा खेम की ओर से किरोड़ी को मनाने के प्रयास जारी रहे तो माथुर के अंदर की घुटन गरम लावे की तरह कभी भी बाहर आ सकती है।
सूबे में भाजपा से रूठने वालों का स्वाभाविक ठिकाना कांग्रेस होता है। पर किरोड़ी के कदम कुछ ठिठके हुए हैं। वहज साफ है वे 'यूज एंड थ्रो' की स्थिति से दो-चार होना नहीं चाहते। विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस को किरोड़ी की जरूरत तो है, लेकिन सरकार चलाने के लिए कम लोकसभा चुनाव के लिए ज्यादा। यही वहज है कि कांग्रेस की ओर से न तो किरोड़ी को मनाने की ज्यादा कोशिशें नहीं हुईं और न ही किसी बड़े नेता ने उनसे संपर्क किया। हालांकि किरोड़ी, राहुल गांधी और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के अलावा अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह व मुकुल वासनिक से कई बार मिल चुके हैं। कांग्रेस की ओर से इस बात का ध्यान जरूर रखा गया कि किरोड़ी को नाराज होना का कोई बहाना न मिले। गहलोत सरकार के गठन के समय भी उनसे बात की गई। सूत्रों के मुताबिक उन्हें मंत्री बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया। राजी नहीं होने पर उनकी पत्नी को राज्य मंत्री बनाया। केंद्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा की उपस्थिति के कारण भी कांग्रेस सोच-समझकर कदम उठा रही है। किरोड़ी के कांग्रेस में आने से दोनों नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ सकती है। आने वाले दिनों में मीणा बिरादरी के दो दिग्गजों के बीच संतुलन कायम करना कांग्रेस के लिए कड़ी चुनौती होगी। किरोड़ी को भी इसका अहसास है कि कांग्रेसे के कुनबे में जाने से उन्हें नमोनारायण की कड़ी चुनौती मिलेगी। भाजपा में वे मीणा समाज के इकलौते बड़े नेता थे, लेकिन कांग्रेस में ऐसा नहीं होगा। किरोड़ी किसी कीमत पर समाज में अपनी पकड़ कमजोर नहीं करना चाहेंगे।
किरोड़ी को करीब से जानने वाले बताते हैं कि उनकी मनोदशा को भांपना सहज नहीं है। 'वेट एंड वॉच' की स्थिति के बीच पल-पल बदलते बयान राजनैतिक विश्लेषकों को उलझा देते हैं। किरोड़ी एक ओर कहते हैं कि मैं राजनीति में शुद्धिकरण की लड़ाई लड़ रहा हूं। ओम माथुर और वसुंधरा राजे की तानाशाही के खिलाफ मैंने आवाज उठाई और जनता ने हमारा साथ दिया। भाजपा का नेतृत्व अभी भी उन्हीं पर भरोसा कर रहा है। लोकसभा चुनाव में फिर से सबक सिखाएंगे। भाजपा की करारी हार तय है। साथ ही संघ की विचारधारा पर कायम रखने का जिक्र करते हुए कहते हैं भाजपा तो मेरा घर है। वहीं, दूसरी ओर गहलोत सरकार को समर्थन देने, पत्नी गोलमा का मंत्री पद लेने और बार-बार कांग्रेस के बड़े नेताओं से संपर्क साधने की वजह से कांग्रेस के कुनबे में जाने के कयास भी ठंडे नहीं पड़ते हैं। किरोड़ी का मन टटोलने की कोशिश की तो 'कांग्रेस और भाजपा के बीच खड़े होकर कदमताल कर रहा हूं' कहते हुए सवाल को टाल गए। कांग्रेस के प्रति 'सॉफ्ट कॉर्नर' के बारे में पूछे जाने पर 'अब कोई इतना ख्याल रखे तो हमारा भी तो कुछ फर्ज बनता है...' कहते हुए आगामी कदम का संकेत दे दिया। कांग्रेस में जाने के कयासों को पुष्ट करते हुए उनकी पत्नी गोलमा देवी कहती हैं 'मैं कांग्रेस के समर्थन पर कायम रहूंगी। न तो खुद भाजपा में जाऊंगी और न ही इन्हें जाने दूंगी।'

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