शुक्रवार, जनवरी 23, 2009

जोश में आए जोशी


सूबे के दो कांग्रेसी दिग्गजों के बीच इन दिनों 'नंबर वन' बनने के लिए होड़ मची हुई है। रस्साकशी में एक छोर पर अशोक गहलोत हैं तो दूसरे पर सी।पी. जोशी। सियासत की इस जुगलजोड़ी पर कांग्रेस कभी फक्र किया करती थी, फिर कैसे पनपा दोनों के रिश्तों में छत्तीस का आंकड़ा?

वे कभी अशोक गहलोत के दाएं-बाएं नजर आते थे। लेकिन, अब गहलोत का नाम सुनते ही उनके माथे पर बल पड़ जाते हैं। अक्सर किस्मत को भी कोसते हैं, 'एक वोट से नहीं हारता तो मैं ही गद्दीनशीं होता'। जी हां, आपने ठीक पहचाना हम सूबे के कांग्रेसी निजाम डॉ. सी.पी. जोशी की ही बात कर रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट जाने के बाद जोशी आजकल दस जनपथ के 'लाड़ले' बनने की मुहिम में जुटे हैं। पिछले दिनों वे सोनिया दरबार में लोकसभा चुनाव की तैयारियों की रिपोर्ट के बहाने दिल्ली गए और अपनी बिसात बिछा कर आ गए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भनक तक नहीं लगी और राजस्थान में राहुल गांधी का कार्यक्रम तय हो गया। जयपुर में हुए इस कार्यक्रम के दौरान यह साफ तौर पर दिखाई दिया कि सूबे की कांग्रेस में इन दिनों वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई है। इस कार्यक्रम से जोशी को 'अपरहैंड' मिलता देख गहलोत आलाकमान को ये समझाने में जुटे हैं कि राजस्थान में वे ही कांग्रेस का भला कर सकते हैं। अपनी अहमियत पर आंच आते देख गहलोत, राहुल के साथ ही दिल्ली के लिए उड़ लिए और आलाकमान की मिन्नतें करने में जुट गए।
जोशी और गहलोत के बीच छिड़ी अस्तित्व की यह लड़ाई पारंपरिक नहीं है। कांग्रेस कभी इस जुगलजोड़ी की मिसालें दिया करती थी। छोटे-छोटे निर्णयों पर भी दोनों के बीच गुफ्तगु होती थी, लेकिन अब दोनों एक दूसरे को पटकनी देने पर आमादा है। जब हमने जोशी और गहलोत के बीच पनपे इस मनमुटाव की तह में जाने की कोशिश की तो पता चला कि तनातनी का यह दौर बहुत पहले से चल रहा है। दरअसल, प्रदेशाध्यक्ष बनते ही जोशी ने यह ख्याल पाल लिया कि सूबे की कांग्रेस उनके इर्द-गिर्द ही चक्कर काटेगी। गहलोत भी उन्हें सलाम ठोकेंगे, लेकिन हुआ इसके उलट। गहलोत ने उन्हें किनारे करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे जोशी को भी इस बात का आभास होने लगा कि वे 'नंबर वन' होने का भ्रम पाले हुए हैं। लिहाजा उन्होंने शीर्ष पर पहुंचने के लिए हाथ-पैर मारना शुरू किया। आलाकमान की नजरों में छा जाने के मकसद से उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले जयपुर में एक बड़ी रैली का प्लान बनाया। दिन-रात मेहनत की। मेहनत रंग भी लाई। रैली में भारी भीड़ उमड़ी। पर, सीपी की सिट्टी-पिट्टी उस समय गुम हो गई जब पूरे आयोजन के लिए सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत की पीठ थपथपाई। खुद की बोई फसल को गहलोत के हाथों कटती देखते जोशी के पास तिलमिलाने के अलावा और कोई चारा न था।
विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों के बीच की खाई और चौड़ी हो गई। टिकट के दावेदार जोशी को किनारा कर गहलोत की तरफ दौड़ रहे थे। गहलोत चाहे जयपुर रहें या दिल्ली दावेदारों की भीड़ उन्हें घेरे रहती वहीं, जोशी प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में मक्खी मारते हुए दिखते। उपेक्षा से आहत जोशी आखिर कब तक चुप रहते। वे दावेदारों पर यह कहते हुए बरस पड़े कि 'आप लोगों को क्या लोकसभा का चुनाव लडऩा है जो गहलोत जी को घेरे हुए हो, विधानसभा चुनावों के टिकट तो मैं ही फाइनल करूंगा।' जोशी का गुस्सा उस समय और बढ़ जाता है जब आलाकमान टिकट फाइनल करने में गहलोत को उनसे ज्यादा तवज्जो देने लगा। हालांकि टिकट वितरण में उनकी भी चली, लेकिन 'नंबर दो' की हैसियत से। सूत्रों के मुताबिक जोशी ने इस उपेक्षा पर सोनिया गांधी में सामने नाराजगी भी जाहिर की, लेकिन खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। वजह साफ थी। टिकट वितरण पर दस जनपथ को नाराज कर जोशी, सीएम की दौड़ में पिछडऩा नहीं चाहते थे।
विधानसभा के चुनाव हुए। परिणाम कांग्रेस के लिए तो मुफीद रहे, लेकिन जोशी की उम्मीदों को तीन तेरह कर गए। खुद ही चुनाव हार गए। वो भी महज एक वोट से। फिर भी उन्होंने यह समझ कर प्रयास किए कि क्या पता किस्मत जोर मार जाए। जोशी ने खुले तौर पर मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने यह कई बार कहा कि 'चुनाव हारने वाला मुख्यमंत्री नहीं बन सकता है, ऐसा संविधान में कहीं नहीं लिखा है।' वरिष्ठ नेता परसराम मदेरणा के हाथ रखने पर एकबारगी तो लगा कि बात बन सकती है। परंतु, एक वोट से मिली हार के बाद फूटी किस्मत पर दस जनपथ ने फेवीकॉल का जोड़ लगाने का मन नहीं बनाया। धीरे-धीरे उनके बगलगीर रहने वाले विश्वासपात्र भी गहलोत के पीछे हो लिए। आखिर में जोशी अकेले पड़ गए और हुआ वही जो वे नहीं चाहते थे। गहलोत को गद्दी मिली। मुख्यमंत्री बनने के बाद गहलोत के तेवर कड़े होने ही थे। टीम बनाने की बारी आई तो गहलोत ने जोशी से रस्म निभाने के लिए मशवरा किया। किया वही जो उन्हें करना था।
सियासत में हर कदम पर मिली मात के बाद दुखियाए जोशी ने एक बार तो राजनीति से तौबा कर हाथ में चॉक थाम फिर से शिक्षक बन कक्षा में जाने का मन बना लिया था। सूत्रों के मुताबिक जोशी ने इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी थीं, लेकिन दस जनपथ से मिले संकेतों के बाद उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी ने लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करने पर उन्हें उपकृत करने का वादा किया है। इसी के चलते जोशी ने अपना पूरा ध्यान लोकसभा चुनावों पर केंद्रित कर दिया है। उन्होंने 'टारगेट-25' बनाकर आलाकमान को बड़ा सपना दिखाया है। जोशी ने इस बात का भी पूरा ध्यान रखा है कि आम चुनाव में अच्छे प्रदर्शन का श्रेय हमेशा की तरह अशोक गहलोत न हड़प जाएं। वे चुनाव की रणनीति बनाने में गहलोत को एक सीमा तक ही शामिल कर रहे हैं। 'टारगेट-25' भी अकेले जोशी के दिमाग की उपज है।
राहुल गांधी के जयपुर दौरे ने सी.पी. जोशी के लिए 'ऑक्सीजन' का काम किया है। वैस जोशी ने 'युवराज' के दौरे का बेहतरीन उपयोग किया। वे चाहते तो किसी खुले मैदान में भीड़ के सामने राहुल को मंच पर उतार कर शक्ति प्रदर्शन कर सकते थे। पर, जोशी ने कार्यकत्र्ताओं की बजाय बड़े नेताओं के सामने ताकत दिखाना ज्यादा मुनासिब समझा। उनका यह तरीका कारगर भी रहा। आखिर कांग्रेसी दिग्गजों ने भी मान लिया कि पार्टी प्रदेशाध्यक्ष अभी चुके नहीं है। दस जनपथ तक उनके भी रसूख हैं। कार्यक्रम में राहुल गांधी के 'मैं विधानसभा में कांग्रेस की जीत से संतुष्ट नहीं हूं' कहने पर जोशी के चेहरे पर आई मुस्कान और गहलोत के माथे पर उभरी चिंता की लकीरों से कई संकेत मिलते हैं।
राहुल गांधी की उपस्थिति में जोशी ने यह कहते हुए अशोक गहलोत को कठघरे में खड़ा कर दिया कि 'राज में कार्यकत्र्ताओं की भागीदारी के बिना सत्ता परिर्वतन का लक्ष्य अधूरा है।' जोशी यहीं नहीं रूके उन्होंने यह कहते हुए गहलोत पर तंज कसा कि 'विधानसभा चुनावों में जीत पर ज्यादा इतराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कांग्रेस का वोट महज 1.6 प्रतिशत बढ़ा है। लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करना है तो इसे 10 फीसदी तक बढ़ाना होगा।' जोशी-गहलोत में पनपे मनमुटाव से सबसे ज्यादा उलझन में लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे नेता हैं। दो दिग्गजों के बीच हो रही रस्साकशी के बीच कांग्रेसी नेता यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे टिकट की दावेदारी के लिए किसके पास जाएं। वैसे फिलहाल तो दोनों के पास जाने में ही समझदारी है।

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