शनिवार, मई 02, 2009

पानी न कंठ को न खेत को


पश्चिमी राजस्थान में बाड़मेर जिले के तिलवाड़ा गांव की 48 वर्षीय भूरी देवी पेड़ के नीचे छितराई हुइ छांव में पानी के टैंकर का इंतजार कर रही है। यह जगह उसके घर से पांच किलोमीटर से भी ज्यादा दूर है। वह पिछले दो घंटे से टैंकर आने की उम्मीद लगाए बैठी है। वह यहां एक घंटे और रुकेगी, यदि टैंकर आ जाता है तो ठीक नहीं तो उसे तीन किलोमीटर आगे बने टांके पर जाकर पानी लाना होगा। यानी अपने परिवार की प्यास बुझाने के लिए भूरी देवी सिर पर 25 लीटर वजन लिए हुए आठ किलोमीटर से भी ज्यादा पैदल चलकर घर पहुंचेंगी। इस इलाके में पीने का पानी जुटाने के लिए इतनी मशक्कत करने वाली भूरी देवी अकेली महिला नहीं हैं। पश्चिमी राजस्थान के ज्यादातर इलाकों में पेयजल की यही स्थिति है। हालांकि इंदिरा गांधी नहर के आने से कई जिलों में हालात पहले से बेहतर जरूर हुए हैं।
वैसे पश्चिमी राजस्थान ही नहीं समूचे राज्य में ही पीने के पानी की समस्या है। गांव ही नहीं शहरी क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं। सैकड़ों शहर ऐसे हैं जहां सात दिन में एक बार जलापूर्ति होती है। फिर भी शहरों में तो लोग जैसे-तैसे करके पीने का पानी जुटा लेते हैं, पर गांवों में स्थिति बेहद खराब है। गांव हो या शहर, यहां पेयजल की आपूर्ति भूमिगत जल स्रोतों से होती है। गर्मियां आते-आते इनमें से अधिकांश जलस्रोत पूरी तरह से सूख जाते हैं। दरअसल, बीते सालों में भूमिगत का अंधाधुंध दोहन होने से जलस्तर तेजी से नीचे गिरा है। वर्षा की मात्रा कम होने के कारण किसानों को सिंचाई के लिए भूमिगत जलस्रोतों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। राज्य में कुओं और नलकूपों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है और भूमिगत जल के दोहन की गति बढ़ती ही जा रही है, जबकि धरती में जल समाने की गति उससे आधी भी नहीं है। ऐसी स्थिति में आने वाले समय में हालात बेहद खराब होने वाले हैं, क्योंकि एक सीमा के बाद भूमिगत जल भी समाप्त हो जाएगा।
सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के आंकड़ों पर गौर करें तो समस्या की बिकरालता का अंदाजा लग जाता है। बोर्ड के मुताबिक राज्य के 236 ब्लॉकों में से 140 में भूमिगत जल का दोहन अपनी सीमा को कब का पार कर चुका है। 50 ब्लॉकों में यह खतरनाक स्तर है और 14 में अद्र्धखतरनाक स्थिति में। यदि समय रहते नहीं चेते तो इन ब्लॉकों में ऐसा समय आने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा जब यहां सिंचाई के पानी तो दूर पीने का पानी भी नसीब नहीं होगा। राजस्थान में समस्या महज भूमिगत जल तक ही सीमित नहीं है। जो पानी यहां उपलब्ध है, उसका अधिकांश भाग सिंचाई करने व पानी पीने के लिए उपयुक्त नहीं है। राज्य के 32 में से 30 जिले किसी न किसी रूप से पानी में फ्लोराइड की समस्या से ग्रस्त हैं। कई जिलों में तो हालात बेहद खराब है और लोग इससे गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं। खारे पानी की समस्या भी यहां व्यापक स्तर पर है। राजस्थान में जल संकट को दूर करने के लिए परंपरागत जल स्रोतों को फिर से ध्यान देकर जल संग्रहण क्षेत्रों को बढ़ाना होगा। जल पुरूष राजेंद्र सिंह ने यह सब करके दिखाया है। जब वे अलवर जिले में इसका सफल प्रयोग कर सकते हैं तो राज्य के बाकी हिस्सों या यूं कहें देश भर में इस तरह का अभियान क्यों नहीं चलाया जाता। इसके अलावा इस समस्या के समाधान का और कोइ रास्ता भी नहीं है।

1 टिप्पणी:

  1. जल संग्रहण क्षेत्रों को बढ़ाना होगा-बस, यही उचित मार्ग है!

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