सोमवार, अप्रैल 20, 2009

अलझती उम्मीदें


सूबे में कांग्रेस 'टारगेट-25' के इर्द-गिर्द और भाजपा पिछले प्रदर्शन के आसपास ठहरने की उम्मीद कर रही है, लेकिन दोनों दलों की ये उम्मीदें कई मोर्चों पर उलझी होने से पूरी होती हुई दिखाई नहीं दे रही हैं। असल में कौन कितने पानी में है? एक आकलन!

राजनीति में जीत मिले या हार संकट पीछा नहीं छोड़ते। सूबे की दोनों पार्टियां इन दिनों सियासत के इसी सच से रूबरू हो रही हैं। जहां कांग्रेस विधानसभा चुनाव में मिली जीत को लोकसभा चुनाव में दोहराने के लिए जूझ रही हैं वहीं, भारतीय जनता पार्टी एक और हार को टालने के लिए संघर्ष कर रही है। सूबे में कांग्रेस ने आम चुनाव की तिथियां घोषित होने से पहले ही तैयारियां शुरू कर दी थीं। 'टारगेट-25' बना पार्टी क्लीन स्वीप के इरादे से मैदान में उतरी। समूचे राजस्थान में कांग्रेस के पक्ष में माहौल को देखकर एकबारगी तो लग रहा था कि पार्टी अपने तय लक्ष्य के करीब पहुंचने में कामयाब हो जाएगी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने तेजी से अपनी स्थिति में सुधार किया। बिखरी-बिखरी सी दिखने वाली भाजपा अब एकजुट होती दिखाई दे रही है। ताजा हालातों में दोनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर है।
वैसे इसमें कोई दो राय नहीं है कि राज्य में कांग्रेस की सीटों में इजाफा होगा। गौरतलब है कि पिछले आम चुनाव में कांग्रेस को 25 में से महज 4 सीटों पर कामयाबी मिली थी और शेष सभी 21 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं। यदि विधानसभा चुनाव में हुए वोटिंग पैटर्न को आधार माना जाए तो कांग्रेस आसानी से 12 से 14 सीटें जीतने में सफल हो जाएगी। हालांकि कांग्रेसी इससे कहीं ज्यादा की उम्मीद लगाए बैठे हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक 10 सीटों पर तो कांग्रेस एकतरफा जीत की स्थिति में है और बाकी 15 में से आधी सीटों पर जीत की पूरी उम्मीद है। इस तरह से कांगे्रसी 17 से 18 सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए कांग्रेस को खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। सूबे में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व टिकट वितरण से भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है। गुटबाजी से बचने के लिए कांग्रेस ने कई सीटों पर बेहद कमजोर प्रत्याशी मैदान में उतार अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। टिकट वितरण में हुई देरी कांग्रेस के लिए नुकसानदायक हो सकती है। कई सीटों पर तो भाजपा उम्मीदवारों की घोषणा के 20 दिन बाद कांगेस ने अपने प्रत्याशी तय किए हैं। इन उम्मीदवारों को पूरे क्षेत्र को कवर करने लायक समय ही नहीं बचा है। पार्टी को कई जगह बगावत का भी सामना करना पड़ रहा है। बूटा सिंह सरीखे दिग्गज नेता के अदावत पर उतर आने का खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ेगा।
विधानसभा चुनावों में भाजपा की खुली खिलाफत करने वाले डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और प्रह्लाद गुंजल की नाराजगी भी कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकती है। निर्दलीय मैदान में उतरे किरोड़ी दौसा में तो कांग्रेस उम्मीदवार लक्ष्मण मीणा के लिए मुसीबतें खड़ी कर ही रहे हैं, बाकी सीटों पर भी समीकरण उलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि इस पूरे मामले में अशोक गहलोत की रणनीति कारगर तरीके से काम कर रही है। पहले बसपा विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर और फिर परसादी लाल मीणा और रामकिशोर सैनी को अपने साथ लेकर वे किरोड़ी के पर कतरने में कामयाब हो गए हैं। अब न तो मीणा समाज में उनकी उतनी पकड़ बची है और न ही स्वयं की उम्मीदवारी में उतना दम। किरोड़ी एपीसोड को लंबा खींचना कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है। किरोड़ी अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए दौसा सीट पर ही उलझकर रह गए हैं। अन्य सीटों पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए उनके पास समय ही नहीं बचा है। प्रह्लाद गुंजल जरूर कांग्रेस के लिए दिक्कतें खड़ी कर सकते हैं। गुंजल को कोटा से टिकट दिलवाने का वादा सूबे के कांग्रेसी निजाम सी.पी. जोशी को भारी पड़ सकता है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा की उम्मीदों की बात करें तो विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद वसुंधरा राजे पार्टी को काफी हद तक एकजुट करने में कामयाब रही है। पार्टी पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में है। एकाध सीट को छोड़ दें तो पार्टी ने टिकट वितरण भी पूरी मुस्तैदी से किया है। बसपा विधायकों के कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद भाजपा ने अपने कई विधायकों को भी मैदान में उतारा है। ये सभी कांग्रेस उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। भाजपा ने मौजूदा सांसदों के खिलाफ एंटीइंकंबेंसी को ध्यान में रखते हुए कई सीटों पर नए और युवा चेहरों का उम्मीदवार बना दांव खेला है। हालांकि विधानसभा चुनाव में पार्टी का यह दांव उल्टा पड़ गया था और कई दिग्गजों ने खुली खिलाफत कर दी थी। भाजपा को बगावत का सामना इस बार भी करना पड़ रहा है। कई सीटों पर बागी उम्मीदवार खड़े हो गए हैं। भाजपा में स्टार प्रचारकों की कमी भी खल रही है। प्रदेश में वसुंधरा राजे ही एक ऐसा चेहरा हैं जो भीड़ खींचने में सक्षम हैं। वे भी मुकाबले मं फंसे अपने बेटे दुष्यंत के कारण झालावाड़ से बाहर निकल ही नहीं पा रही हैं।
भाजपा ने कास्ट केमिस्ट्री को भी दुरूस्त करने का प्रयास किया है। पार्टी ने कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को टिकट देकर नाराज चल रहे गुर्जरों को मनाने का प्रयास किया है। हालांकि यह पक्का नहीं है कि बैंसला के कहने से गुर्जर वोट भाजपा को मिल जाएंगे। गोया किरोड़ी लाल मीणा और प्रह्लाद गुंजल की कांग्रेस से नाराजगी का सीधा फायदा भाजपा को होगा। मीणा और गुंजल कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए भाजपा के उम्मीदवारों को लाभ पहुंचा सकते हैं। बदले हुए हालातों में भाजपा 10 सीटों पर तो अपनी जीत पक्की मान रही है और बाकी पर फिफ्टी-फिफ्टी की संभावना जता रही है। यदि भाजपा इसके आसपास पहुंचने में कामयाब हो जाती है तो यह पार्टी के जिए बड़ी जीत होगी।

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