गुरुवार, दिसंबर 18, 2008

हाथी ने उड़ाए होश


सूबे की सियासत में तेज रफ्तार से बढ़ता हाथी, हाथ के लिए चुनौती बन गया है। विधानसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन से कांग्रेस के कान खड़े हो गए हैं। लोकसभा चुनावों में मायावती की टीम कई सीटों पर कांग्रेस को उलझा सकती है। क्या सोनिया बिग्रेड बसपा इफेक्ट से निपट पाएगी?

मरुधरा में सियासत का सिरमौर बनने के बाद कांग्रेस ने दिल्ली की गद्दी पर फिर से काबिज होने की कवायद तेज कर दी है। गहलोत की ताजपोशी के बाद पार्टी को लोकसभा चुनाव में राजस्थान से काफी उम्मीदें हैं, लेकिन कड़ी टक्कर देने की तैयारी कर रही भाजपा के अलावा मजबूत होती बसपा ने कांग्रेस को मुसीबत में डाल दिया है। मायावती की प्रधानमंत्री बनने की महत्त्वाकांक्षा यहां भी खतरा बनती नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के दमदार प्रदर्शन से कांग्रेस में खलबली मची हुई है। पार्टी को परंपरागत वोट बैंक खिसकने का भय सता रहा है। प्रदेश में बसपा को सीटें तो 6 ही मिलीं, लेकिन बाकी आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पार्टी के उम्मीदवार 10 सीटों पर दूसरे और 71 पर तीसरे स्थान पर रहे। वोट प्रतिशत तकरीबन दोगुना होकर 7.6 प्रतिशत पर पहुंच गया। बसपा विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को आम चुनावों में भी दोहराने की पूरी तैयारी कर ली है। छह सीटों पर तो उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं और प्रचार अभियान भी शुरू हो गया है।
राजस्थान का वोटर शुरू से ही द्विदलीय व्यवस्था में विश्वास रखता आया है। तीसरी ताकत बनने का प्रयास कई सियासी पार्टियों ने किए पर सफलता नहीं मिली। फिलहाल बसपा इस मकसद में कुछ हद तक कामयाब होती दिख रही है। उत्तर प्रदेश में सफल हुई 'सोशल इंजीनियरिंग' को राजस्थान में भी शुरूआती सफलता मिल रही है। मायावती ने उत्तर प्रदेश में सत्ता संभालने के बाद जिन क्षेत्रों में पार्टी की स्थिति मजबूत करने की दिशा में ध्यान देना शुरू किया उनमें राजस्थान मुख्य है। उन्होंने सबसे पहले पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर जोर दिया। प्रदेश के कई हिस्सों में सभाएं की। अप्रैल में आयोजित 'सर्वसमाज भाईचारा बनाओ रेली' में उमड़ी भारी भीड़ के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी इस बार के चुनावों में अच्छी उपस्थिति दर्ज करवा सकती है।
बसपा की रणनीति देखकर साफ संकेत मिलता है कि मायावती राजस्थान की 'कास्ट केमिस्‍िटी' को अच्छी तरह समझ गई हैं। वे दलित व अल्पसंख्यकों के अलावा राज्य की राजनीति में दखल रखने वाले 'प्रेशर ग्रुप्स' को अपना टारगेट बना रही हैं। हालांकि वे अपनी रणनीति में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई हैं। उत्तर प्रदेश में सोशल इंजीनियरिंग के सूत्रधार माने जाने वाले अनंत मिश्र ने राजस्थान ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष व कांग्रेसी नेता भंवर लाल शर्मा को पार्टी में लाने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। जाट मतदाताओं पर पकड़ बनाने के लिए मायावती ने अपनी सरकार के काबीना मंत्री लक्ष्मीनारायण चौधरी को राजस्थान भेजा। उन्होंने जाट बाहुल्य इलाकों का सघन दौरा किया। बसपा को समर्थन देने पर जाट मुख्यमंत्री का शगूफा भी छोड़ा पर बात नहीं बनी। गुर्जर नेता प्रह्लाद गुंजल ने जरूर बसपा का दामन थामा परंतु मायावती को उनका काम करने का तरीका रास नहीं आया। उनके रहते मीणा मतदाताओं के अलगाव का भी खतरा था। कुछ ही दिनों में पार्टी ने गुंजल को बाहर का रास्ता दिखा दिया। कांग्रेसी दिग्गज नटवर सिंह व उनके पुत्र जगत सिंह के साथ बसपा की ज्यादा नहीं निभी। बसपा भी उन्हें ठुकराने वालों की जमात में शामिल हो गई।
शुरूआती असफताओं के वाबजूद विधानसभा चुनाव में पार्टी पूरी तैयारी के साथ उतरी। चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले ही ज्यादातर उम्मीदवार तय हो गए थे। प्रचार अभियान में भी पार्टी ने पूरी ताकत झोंकी। मायावती ने क्षेत्र के तूफानी दौरे किए। उनकी सरकार के कई मंत्री यही डेरा डाले रहे। पहली बार लगा कि बसपा राज्य में रस्मी तौर पर चुनाव नहीं लड़ रही है। परिणाम भी पहले से बेहतर रहे। सीट और मतों का हिस्सा तो बड़ा ही दूसरी पार्टियों की जीत-हार में भी अहम भूमिका निभाई। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व विधानसभा चुनावों में बसपा के प्रदर्शन से खासा खुश है। प्रदेशाध्यक्ष डूंगरराम गेदर ने बताया कि 'इन चुनावों में हमारा जनाधार तेजी से बढ़ा। सीटों की संख्या को नहीं देखें। हमें और ज्यादा सीटें मिलती यदि हमने कुछ बुनियादी गलतियां नहीं की होतीं। हम इन गलतियों को दूर कर लोकसभा चुनावों में और अच्छा प्रदर्शन करेंगे। हम जल्दी ही सभी सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर देंगे।'
राज्य की राजनीति में बसपा के बढ़ते प्रभाव से कांग्रेस का परेशान होना लाजमी है। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी ने बताया कि 'बहुजन समाज पार्टी ने प्रदेश में कांग्रेस के लिए नई चुनौती पेश की है। विधानसभा चुनाव में हमें इसका नुकसान हुआ। यदि बसपा नहीं होती तो हमें विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत मिलता। लोकसभा चुनावों में यह नुकसान नहीं हो, इसके उपाय किए जा रहे हैं।' विश्लेषकों के मुताबिक बसपा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है। हाथी 8 से 10 सीटों पर हाथ का हुलिया बिगाड़ सकता है। सूबे में सरकार बनाने के बाद कांग्रेस इतना बड़ा नुकसान नहीं उठाना चाहेगी। कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान डांग, बृज व मेवात क्षेत्र में होने का अनुमान है। बसपा यहां कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो गई है। क्षेत्र में दलितों व अल्पसंख्यकों के अलावा मीणा जाति का बसपा को भरपूर समर्थन मिल रहा है। क्षेत्र में दिग्गज जाट नेता विश्वेंद्र सिंह भी बसपा का तोड़ नहीं ढूंढ पाए। विधानसभा की कई सीटों पर तो कांग्रेस तीसरे से चौथे स्थान पर खिसक गई। विश्वेंद्र को भी हार का मुंह देखना पड़ा।
राजस्थान में बसपा के बढ़ते जनाधार से कांग्रेस आलाकमान भी चिंतित है। सोनिया गांधी के सिपेहसालार बसपा फेक्टर का एनकाउंटर करने में जुटे हुए हैं। पार्टी परंपरागत वोटों में बसपा के सेंधमारी के लिए कोई रास्ता नहीं छोडऩा चाहती। मुख्यमंत्री के रूप में गहलोत के चयन एवं मंत्रिमंडल के गठन में हुई देरी से साफ हो गया है कि आलाकमान हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहा है। पार्टी लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कोई बड़ी चूक नहीं करना चाहती। गहलोत सरकार के गठन में यह ध्यान रखा गया कि किसी बड़े नेता की अनदेखी नहीं हो। हर वर्ग, हर जाति को प्रतिनिधित्व देने का प्रयास किया गया। पार्टी को अच्छी तरह पता है कि बसपा के बाद बड़ी संख्या में बागी में मैदान में आ गए तो मुश्किल खड़ी हो सकती है। हालांकि पार्टी का मानना है कि लोकसभा चुनाव में बसपा इतनी प्रभावशाली नहीं रहेगी। प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी इसका कारण बताते हुए कहते हैं, 'लोकसभा चुनाव, विधानसभा के चुनावों से अलग होते हैं। यहां क्षेत्र बड़ा होता है और मुद्दे अलग। इन चुनावों में बसपा उतना प्रभाव नहीं डालेगी।'

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