बुधवार, मार्च 17, 2010

गडकरी गुड करी


भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अपनी नई टीम में अपेक्षा के अनुरूप युवाओं, महिलाओं और नए चेहरों को अधिक तवज्जो दी है। हालांकि कुछ नामों को देखकर लगता है कि उन्हें मजबूरी में शामिल किया गया है, फिर भी गडकरी बिना काम किए दाएं-बाएं बने रहकर पार्टी की छवि बिगाडऩे वालों से परहेज करते हुए दिखाई दिए हैं। यह तो समय ही बताएगा कि इस नई टीम के साथ गडकरी जैसा प्रदर्शन करना चाह रहे हैं, वैसा कर पाते हैं या नहीं, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के पार्टी की व्याधियों को दुरुस्त करने की ठानी है। यह किसी से नहीं छिपा है कि भाजपा में राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व में मतभेद मनभेद में बदल गए हैं और ऐसी ही स्थिति अनेक राज्यों में भी है। यद्यपि फिलहाल शांति नजर आ रही है, लेकिन यह कहना कठिन है कि पार्टी के नेता गिले-शिकवे दूर कर गडकरी के नेतृत्व में एकजुट हो गए हैं। भाजपा की समस्याएं इसलिए और बढ़ गई हैं, क्योंकि एक तो वह औरों से अलग दल की अपनी छवि खो चुकी है और दूसरे उसके पास ऐसे मुद्दों का अभाव है, जो कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर सकें। भाजपा अपने जिन मुद्दों के लिए जानी जाती थी, वे अब उसकी नैया पार नहीं लगा सकते, क्योंकि एक तो उसने ही उन्हें मझधार में छोड़ा और दूसरे अब आम जनमानस की प्राथमिकताएं बदल गई हैं। इसके बावजूद भाजपा अपनी खोई हुई शक्ति इसलिए फिर से प्राप्त कर सकती है, क्योंकि राष्ट्रीय दल के रूप में कांग्रेस के विकल्प की आवश्यकता महसूस की जा रही है। नितिन गडकरी ने अपनी नई टीम तो बना ली है, लेकिन यह परिणाम तब ही देगी जब यह सुधार और बदलाव की योजना पर एकजुट होकर, ईमानदारी से अमल करे। यह किसी से छिपा नहीं है कि गुटबाजी भाजपा पर किस कदर हावी हो चुकी है। अन्यथा आज भी लोकसभा में १५० से अधिक सांसदों वाली मुख्य विपक्षी पार्टी के प्रति निराशा का वैसा भाव नहीं होता, जैसा पिछले कुछ अरसे से देखने को मिल रहा है। गडकरी सही कहते हैं कि कार्यकर्ताओं की पहचान बड़े नेताओं के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने से नहीं, गांव-गांव घूमने से होगी। यह तब ही संभव है, जब परिक्रमा के पराक्रम से प्रतिष्ठापित होने की परंपरा को समाप्त किया जाए। गुटबाजी समाप्त करने के अलावा फिलहाल राजनीतिक स्तर पर भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बिहार से है, जहां इस वर्ष चुनाव होने हैं। दूसरी चुनौती उत्तर प्रदेश है, जहां से लोकसभा के लिए 80 सदस्य चुने जाते हैं। इस राज्य में पार्टी पहले ही खिसककर चौथे स्थान पर पहुंच गई है। व्यक्तियों के लिए पदों का सृजन करने के बजाय पदों पर व्यक्तियों के चयन का जैसा स्वरूप उभरेगा, गडकरी भाजपा को उसका खोया हुआ स्थान दिलाने में उतने ही सफल रहेंगे। पिछले दिनों लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा था कि राजनीतिक लोगों के बारे में आम धारणा है कि वे बेईमान हैं। नई परिस्थितियों में भाजपा के सामने इस माहौल को बदलने की भी चुनौती है। इस चुनौती से आचरण की शुचिता और जनहित की प्राथमिकता के बल पर ही निपटा जा सकता है। अपने अनुकरणीय कार्य-व्यवहार से ही भाजपा जन समर्थन हासिल कर सकती है। बेहतर होगा कि नितिन गडकरी के नेतृत्व में भाजपा की नई टीम यह प्रदर्शित करे कि वह अपनी राजनीति के जरिये समाज को दिशा देने और उसका उत्थान करने के लिए समर्पित है।

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