सोमवार, अगस्त 11, 2008

कांग्रेस में कलह


चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस की आंतरिक कलह सड़कों पर आ गई है। एक ओर टिकट वितरण को लेकर असंतोष है तो दूसरी और मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में होड़ मची हुई है। ऐसे में क्या कांग्रेस सत्ता में वापसी कर पाएगी?

सूबे में सत्ता संभालने का सपना देख रही कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। टिकट वितरण के बाद पनपा असंतोष थमने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। कई नेताओं ने खुले तौर पर बगावत का बिगुल बजाते हुए पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। वरिष्ठ नेता परसराम मदेरणा द्वारा उम्मीदवारों की सूची पर उठाए सवालों से बात और बिगड़ गई है। डेमेज कंट्रोल के सारे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। पार्टी मुख्यालय में आए दिन हो रही तोडफ़ोड़ से घबराए आला नेताओं ने दफ्तर आना ही छोड़ दिया है।
पार्टी सूत्रों की मानें तो खिलाफत का यह खेल दिग्गजों के इशारों पर ही खेला जा रहा है। दरअसल, विवाद की असल वजह मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर है। पार्टी को इस बात का पूरा भरोसा है कि राज्य में इस बार सरकार कांग्रेस की ही बनेगी। लिहाजा, मुख्यमंत्री बनने की आस लगाए बैठे नेताओं ने हाथ-पैर मारना शुरू कर दिया है। अशोक गहलोत का इस दौड़ में सबसे आगे होना कई नेताओं को रास नहीं आ रहा है। गहलोत भले ही दस जनपथ की पहली पसंद हों, लेकिन राज्य में पार्टी के भीतर ही उनके खिलाफ एक बड़ा गुट तैयार हो रहा है। यह गुट आलाकमान को यह समझाने में तो सफल रहा है कि गहलोत को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करना पार्टी के लिए नुकसानदायक होगा। एंटी गुट के दबाव के चलते पार्टी नेतृत्व ने पिछले कुछ समय से गहलोत को किनारे कर रखा है। सोनिया गांधी के पिछले तीन राजस्थान दौरों पर नजर डाले तो गहलोत को इनमें ज्यादा तवज्जों नहीं दी गई। सूत्रों के मुताबिक यह सब ऊपरी तौर पर किया जा रहा है ताकि चुनाव को पूरी एकजुटता से लड़ा जा सके।
गहलोत के सबसे ज्यादा खतरा परसराम मदेरणा की सक्रिय होने से है। हांलाकि गहलोत ने यह कहकर मामले को शांत करने की कोशिश की है कि मदेरणा का उन पर आशीर्वाद है और उनके सहयोग से ही वे मुख्यमंत्री बना पाए थे। पर लगता है मदेरणा इस बार मानने वाले नहीं हैं। गौरतलब है कि पिछले दिनों दिग्गज जाट नेता ने मौन तोड़ते हुए मीडिया के सामने कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची को लेकर सवाल खड़े किए थे। प्रत्याशियों के बारे में उनसे सलाह नहीं लेने और टिकटों में धन-बल चलने तक के आरोप उन्होंने जड़ दिए। हालांकि अशोक गहलोत के खिलाफ उन्होंने कोई सीधी टिप्पणी नहीं की परंतु बातों ही बातों में बहुत कुछ कह गए। गहलोत पर निशाना साधते हुए उन्होंन कहा कि पिछली कांग्रेस सरकार ने परिसीमन अयोग के सामने गलत तरीके से आंकड़े प्रस्तुत किए जिससे कांग्रेस को बहुत नुकसान हो रहा है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि कांग्रेस की पिछली सरकार ही राज्य में पार्टी की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। आम तौर पर शांत रहने वाले मदेरणा इतने मुखर स्वर में वर्षों बाद मीडिया से मुखातिब हुए। मौके की नजाकत को समझते हुए कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें तुरंत दिल्ली बुलाकर गिले-शिकवे दूर करने में देर नहीं की। आलाकमान किसी भी कीमत पर मदेरणा को नाराज नहीं करना चाहता। सूबे की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जाट मतदाताओं पर उनका खासा प्रभाव है। सोनिया गांधी ने डॉ. सी.पी. जोशी, दिग्विजय सिंह एवं मुकुल वासनिक की मौजूदगी में टिकट वितरण के मसले पर तो सुलह करवा ली, लेकिन गहलोत से नाराजगी दूर नहीं करवा सकीं। सूत्रों के मुताबिक मदेरणा ने सोनिया गांधी से स्पष्ट रूप कहा कि किसान वर्ग की उपेक्षा के कारण पार्टी पिछले चुनवा में बुरी तरह हारी थी और यदि इस बार भी गलती दोहराई गई तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे। दरअसल, उनका सीधा निशाना अशोक गहलोत की तरफ था। राज्य में यह शगूफा बड़ा चर्चित है कि 'गहलोत कर्मचारी, किसान व जाट विरोधी हैं।' इस शगूफे को छोडऩे वाले ओर कोई नहीं कांग्रसी ही हैं।
पार्टी में अशोक गहलोत का विरोध दिनोंदिन बढ़ता देख राहुल गांधी ने उनके विकल्प के रूप में सचिन पायलट का नाम सुझाया था। सोनिया गांधी की देवली में आयोजित सभा में इसके संकेत भी मिले। यहां गहलोत को किनारे कर सोनिया गांधी के भाषण से ऐन पहले पायलट का भाषण रखा गया। पायलट के उस भाषण की आज तक चर्चा होती है। सोनिया गांधी ने भी उसे खूब सराहा था। राहुल गांधी तो चाहते थे कि सचिन को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जाए। इससे युवा मतदाता तो कांग्रेस की तरफ आकर्षित होंगे ही साथ ही गुर्जरों के भी एकतरफा वोट मिलेंगे। फिलहाल राहुल की यह कवायद सफल होती दिखाई नहीं देती है, क्योंकि पार्टी के ही कई आला नेताओं ने अनुभवहीन बताकर सचिन का विरोध किया है। मुख्यमंत्री पद की इस दौड़ के बीच सबसे अहम प्रश्न यह है कि क्या कांग्रेस सत्ता के सिंहासन पर सवार होने के लिए बहुमत तक पहुंच पाएगी?

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