महाराष्ट्र के पिंपरी चिंचवाड शहर में रहने वाली सुलभ उबाले इन दिनों बेहद खुश हैं। उनकी कंपनी को एक बड़ा ऑर्डर जो मिला है। उबाले न तो कोई उद्योगपति हैं और न ही किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की प्रबंधक हैं। वे तो स्वावलंबन की नई इबारत लिखने वाले सामूहिक प्रयासों की एक कड़ी हैं। पिंपरी चिंचवाड में उनकी जैसी 160 महिलाएं हैं जिन्होंने अपने दम पर 'स्वामिनी बचत गट अखिल संघ लिमिटेड' यानी एसएमबीजीएएस नामक कंपनी बनाई है। इनमें से ज्यादातर महिलाएं झुग्गियों में रहती हैं और कुछ दिन पहले तक दूसरों के घरों में काम किया करती थीं। इन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी ऐसा काम शुरू कर पाएंगी जिस पर उनका मालिकाना हक तो होगा ही, दूसरों को को रोजगार मुहैया कराने का अवसर भी मिलेगा।
'स्वामिनी' को 1 करोड़ रुपये के निवेश के साथ शुरू किया गया है। मामूली हैसियत रखने वाली महिलाओं के लिए इतनी बड़ी रकम जुटाने का सफर किसी जंग जीतने जैसा था। दिक्कतों के कई दौर आए, पर इरादा कमजोर नहीं पड़ा। सबसे पहले इन महिलाओं ने अपने पास जमा पूंजी को एकत्रित करना शुरू किया। शुरूआत में इसे इतनी सफलता नहीं मिली, क्योंकि बरसों की मेहनत और परिवार का पेट काटकर की गई बचत के जाया जाने का डर सबके मन में था। धीरे-धीरे इस संदेह को दूर कर जब आत्मनिर्भर होने का सपना दिखाया तो कारवां बढ़ता गया और 20 लाख रुपए इक्कटृठा हो गए। इससे समूह की सदस्यों का हौंसला बढ़ा और बाकी पैसों के लिए प्रयास करना शुरू किया। कई संस्थाओं और महकमों को अपनी योजना के बारे में समझाया। आखिर में मेहनत रंग लाई और इस पूरी परियोजना से प्रभावित होकर पिंपरी चिंचवाड नगर निगम ने 'स्वामिनी' को 30 लाख रुपये की सब्सिडी देने का फैसला किया। बाकी बचे 50 लाख रुपए का बैंक ऑफ बड़ौदा से अग्रिम कर्ज ले लिया। इसे सात साल की अवधि में चुकता करना है।
'स्वामिनी' ने अपनी पहली इकाई तलवाड के औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित की है और यहां प्लास्टिक के बैग बनाए जाते हैं। ईकाई शुरू हुए अभी कुछ ही दिन हुए हैं और कंपनी को बड़ा ऑर्डर भी मिल गया। पुणे की प्लास्टिक बनाने वाली एक कंपनी ने आगामी सात साल के लिए 700 किलोग्राम प्रतिदिन के हिसाब से 250 दिनों तक प्लास्टिक बैग बनाने का करार किया है। कंपनी चलाने वाली महिलाओं की खुशी उस समय दोगुनी हो गई जब उन्हें पता लगा कि उनके यहां का उत्पाद अमरीका और दुबई के बाजारों में बेचा जाएगा। वे इसे एक चुनौती भी मानती हैं। कंपनी की सदस्य स्वाती मजूमदार बताती हैं कि 'विदेशी बाजार में माल का निर्यात किए जाने की वजह से हमारे सामने बेहतर गुणवत्ता वाले बैग तैयार करने की चुनौती होगी। इसलिए फिलहाल हम मुनाफे के बारे में नहीं सोच रहे हैं।' पुणे की कंपनी के ऑर्डर की आपूर्ति करने के लिए कंपनी में जोर-शोर से काम चल रहा है।
महिलाओं के सामूहिक प्रयासों खड़ी हुई 'स्वामिनी' लोगों के लिए किसी कौतूहल से कम नहीं है। क्षेत्र के लोगों तो क्या, इन महिलाओं के परिवारजनों को भी इस बात का यकीन नहीं हो रहा है कि कल तक घरेलू कामकाज में सिमटी रहने वाली औरत इतनी काबिल है। समूह की एक सदस्य सुलभ उबाले कहती हैं, 'पहले ये महिलाएं गरीब थीं और समाज में इनकी स्थिति भी अच्छी नहीं थी, पर अब इस रोजगार के जरिए उनकी हालत सुधरी है। कई लोगों को तो अब भी यह विश्वास नहीं होता है कि इन महिलाओं ने खुद की एक औद्योगिक इकाई खोली है।' साथ मिलकर काम करने की मिसाल कायम करने वाली ये महिलाएं यहीं रुकना नहीं चाहती है, उनकी मंजिल बहुत आगे है। अभी उनकी 'स्वामिनी' ने प्लास्टिक बैग बनाने की एक इकाई लगाई है, भविष्य में इन्हें बढ़ाने की भी योजना है। अब तो इलाके के लोगों को भी यकीन होने लगा है कि 'स्वामिनी' का सफर यहीं थमने वाला नहीं है।
'स्वामिनी' सदस्य महिलाओं के लिए ही नहीं, इलाके की उन महिलाओं के लिए भी वरदान साबित हो रही है जो काम करने की कूवत तो रखती हैं, पर जिन्हें उचित अवसर नहीं मिलता है। प्लास्टिक बैग बनाने वाली इकाई में इस समय तकरीबन 70 महिलाएं काम कर रही हैं। इन्हें यहां न केवल काम करने का बढिय़ा माहौल मिल रहा है, बल्कि अच्छी तनख्वाह भी मिल रही है। इनमें से ज्यादातर वही हैं जो मामूली वेतन पर घरों में काम करती थीं। 'स्वामिनी' ने इनके हुनर को पहचाना और घरेलू कामकाज करने वाली महिलाओं को ट्रेनिंग देकर कुशल कामगार बना दिया। पुणे की प्लास्टिक बनाने वाली कंपनी के ऑर्डर को पूरा करने का जिम्मा इन्हीं के ऊपर है। 'स्वामिनी' से जुड़े हर शख्स को उम्मीद है कि जुलाई के दूसरे हफ्ते में जब उत्पादन की पहली खेप आएगी तो हर कोई उसकी तारीफ करेगा। देश तो क्या सात समंदर पार भी उसे वाहवाही मिलेगी।
(5 जुलाई को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित)
आभार इस आलेख को प्रस्तुत करने का.
जवाब देंहटाएं'swamini' aur in sabhi swaminiyon ko salaam jinhone ye udaharan prastut karne wala kaam kiya hai...shukriya aapka is prastuti ke liye
जवाब देंहटाएंवाह ऐसी कई ’स्वामिनी’ की देश को जरुरत है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जानकारी, धन्यवाद्…
जवाब देंहटाएंachha laga !
जवाब देंहटाएंaise prayas sabhi jagah hone chahiye.sulabh ubale ji ko dhanyavad
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