विधानसभा चुनावों की मामूली जीत को लोकसभा चुनावों में 'क्लीन स्वीप' में तब्दील करने के बाद अशोक गहलोत सब्र और साहस के नए सियासतदां के रूप में उभरे हैं। अब उनका ध्यान सूबे में सुशासन के सपने को साकार करने की ओर है। क्या है उनका मिशन सुशासन? एक रिपोर्ट!
बात 18 जून की है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हरित राजस्थान योजना का पहला पौधा लगाते हुए कहते हैं, 'मैंने आज असली माली का काम किया है। हम सबको इसी जिम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए।' यह पहला मौका नहीं है जब उन्होंने आम लोगों को सरकार से कनेक्ट करने की असरदार अपील की हो। राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी दूसरी पारी के दौरान गहलोत आए दिन कुछ न कुछ ऐसा करते हैं कि विरोधी भी वाह-वाह करने लगते हैं। ऐसा ही नजारा पिछले दिनों जाट समाज द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में देखने को मिला जब भाजपा नेता व राज्यसभा सदस्य डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया ने गहलोत की तारीफों के जमकर पुल बांधे। कार्यक्रम में गहलोत और राज्य के तमाम दिग्गज जाट नेताओं की उपस्थित में पिलानिया ने गहलोत के कामकाज की सराहना करते हुए यहां तक कहा कि गहलोत मारवाड़ के ही नहीं समूचे राजस्थान के गांधी हैं। ये वही पिलानिया हैं जिन्होंने राजस्थान में जाटों को ओबीसी आरक्षण दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी और वाजपेयी सरकार द्वारा इसकी घोषणा के बाद वे भाजपा को दामन थाम राज्यसभा पहुंच गए। एक समय था जब पिलानिया, गहलोत को जाट विरोधी साबित करने का कोई मौका नहीं चूकते थे, पर आज वे ही उन पर कायल हैं।
चुनाव की थकान मिटाने के बाद अब अशोक गहलोत का पूरा ध्यान सुचारू रूप से सरकार चलाने पर है। राज्य की जनता को उनसे उम्मीदें भी खूब हैं, क्योंकि इस बार सरकार के पास काम न करने का कोई बहाना नहीं है। विधासनसभा में उन्हें पूर्व बहुमत तो प्राप्त है ही केंद्र में भी कांग्रेस नीत सरकार होने के कारण धन की कमी भी आड़े नहीं आएगी। गहलोत स्वयं भी जानते हैं कि लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना आसान नहीं है। लिहाजा, वे इन दिनों वे सरकार के कील-कांटों को दुरूस्त करने में लगे हैं, ताकि सरकार पूरी ताकत के साथ काम कर सके। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री कुछ मंत्रियों के कामकाज से संतुष्ट नहीं है। आने वाले दिनों में वे ऐसे मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किए जाने की संभावना है। इसमें आधा दर्जन कैबीनेट व कई राज्यमंत्री शामिल हैं। इन मंत्रियों में से ज्यादातर के पर कतरे जाने की संभावना है। माना जा रहा है कि फेरबदल के तहत स्वायत्त शासन व गृह मंत्री शांति धारीवाल, वन एवं खनिज मंत्री रामलाल जाट, जनजाति व तकनीकी शिक्षा मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय का एक-एक विभाग बदला जा सकता है। सार्वजनिक निर्माण राज्यमंत्री प्रमोद जैन भाया का विभाग बदले जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। वहीं, बसपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले छह विधायकों में से कम से कम एक को मंत्री बनाए जाने की चर्चा है। इसके लिए राजकुमार शर्मा और राजेंद्र गुढ़ा का नाम चल रहा है।
मंत्रालयों में बदलाव के अलावा गहलोत का ध्यान राजनीतिक नियुक्तियों की ओर भी है। सूत्रों के मुताबिक आने वाले कुछ दिनों में ही ये नियुक्तियां होनी है। संगठन की ओर से इस प्रक्रिया को जल्दी पूरा करने के काफी दिनों से दबाव आ रहा है। प्रदेशाध्यक्ष डॉ।सी.पी. जोशी तो कई बार सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि जब तक आम कार्यकत्र्ता की सरकार में भागीदारी नहीं होगी सत्ता हासिल करने का जश्न अधूरा है। इन नियुक्तियों के माध्यम से गहलोत संगठन के लिए अच्छा काम करने वालों को ईनाम देने की कोशिश करेंगे। इसके लिए पिछले कई दिनों से कांग्रेसी नेता जयपुर में डेरा डाले हुए हैं और अपने-अपने पक्ष में लॉबिंग कर रहे हैं। बात संगठन की चली तो बताते जाएं कि राज्य में पार्टी अध्यक्ष भी बदला जाना है। वर्तमान अध्यक्ष डॉ.सी.पी.जोशी केंद्र की मनमोहन सरकार में कैबीनेट मंत्री बनने के बाद वे संगठन के लिए पूरा समय नहीं दे पा रहे हैं। प्रदेशाध्यक्ष के लिए कई नेताओं का नाम चल रहा है। कास्ट केमिस्ट्री को ध्यान में रखते हुए गहलोत किसी जाट, दलित अथवा अल्पसंख्यक पर दांव खेल सकते हैं।
अशोक गहलोत स्वाभाव से शांत हैं, पर अधिकारियों से काम लेने के मामले में उन्हें चतुर राजनेता माना जाता है। वे कभी भी ब्यूरोक्रेट्स को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते। वे आक्रामक तरीके से काम नहीं करते, पर उन्हें काम निकालना आता है। अनुशासन तो उन्हेंं शुरू से ही पसंद रहा है, अधिकारियों से भी वे इसकी अपेक्षा करते हैं। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को साफ शब्दों में हिदायत दी है कि काम को सही तरीके से व सही समय पर पूरा करने में किसी भी तरह की कौताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। लगता है ब्यूरोक्रेट्स से निपटने के मामले में गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल की गलतियों से काफी-कुछ सीखा है। उन्होंने पिछली बार अधिकारियों पर जरूरत से ज्यादा यकीन किया, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। इस बार उनकी एक ही रणनीति है, जो अच्छा काम करे उसे ईनाम दो और जो बुरा करे उसे दंड। उनकी इस रणनीति की बानगी कलक्टरों की तबादला सूची में मिल जाती है। सरकार के लिए दिक्कतें खड़े करने वाले कलक्टरों को कुछ महीनों में ही बदल दिया गया, पर साथ ही सरकार का काम आसान करने वाले कलक्टरों को अच्छी पोस्टिंग का ईनाम भी मिला। पिछले दिनों बुलाई गई कलेक्टर्स कांफ्रेंस में गहलोत ने अधिकारियों को सीधी भाषा में समझा दिया कि आमजन को गुड गवर्नेंस देने के लिए अधिकारियों को बातें कम और काम ज्यादा करनी चाहिए।
सरकारी मशीनरी को दुरूस्त कर गहलोत ऐसे कामों को ज्यादा तवज्जों देना चाहते हैं जो लोकलुभावन हों। पिछली कार्यकाल की तरह वे कठोर निर्णय लेकर लोगों को नाराज करने के मूड में नहीं हैं। उन्होंने किसानों के लिए पांच साल तक बिजली की दरें नहीं बढ़ाने और शराब की दुकानों के समय व संख्या में कटौती की घोषणा कर इसकी शुरूआत भी कर दी है। वे इस बार कर्मचारी विरोधी होने के कलंक को भी धोना चाहते हैं। उन्होंने राज्य में छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू करने के बाद ऐसे कर्मचारियों को स्थाई करने के आदेश दिए हैं जो पिछले दस सालों से संविदा के आधार पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा विदेशी में नौकरी के इच्छुक लोगों को सरकार द्वारा बनाई गई प्लेसमेंट एजेंसी के मार्फत दूसरों देशों में भेजा जाएगा। इससे लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही कबूतरबाजी और धोखाधड़ी से भी निजात मिलेगी। युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए सरकार रिक्त पदों के मुताबिक नौकरिया देने की बात पहले ही कह चुकी है।
लोकलुभावन निर्णयों के अलावा गहलोत कुछ ऐसे निर्णय भी करना चाहते हैं जो उनके कार्यकाल में मील का पत्थर साबित हों। मसलन, वे राज्य को विशेष दर्जा दिलाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने प्रयास भी शुरू कर दिए हैं। यदि वे इस मुहिम में सफल होते हैं तो राज्य को केंद्र से अनुदान के रूप में ज्यादा वित्तीय सहायता मिल जाया करेगी, जो यहां की माली हालत के लिए संजीवनी का काम करेगी। उल्लेखनीय है कि विशेष श्रेणी के राज्यों को केंद्रीय योजना सहायता का 90 फीसदी हिस्सा अनुदान के रूप में मिलने से इन राज्यों की वित्तीय स्थिति में तेजी से सुधार आया है। देश में फिलहाल ऐसे राज्यों की संख्या 11 है। वैसे तो बिहार और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्य विशेष श्रेणी की मांग कर रहे हैं, पर इस मामले में राजस्थान के दावे में काफी दम है। विस्तृत क्षेत्र, मरुस्थल, कम वर्षा, कमजोर आधारभूत ढांचा, पेयजल की समस्या, अकाल व सूखा, बदहाल अर्थव्यवस्था सरीखे कई कारणों से राजस्थान को विशेष राज्य का दर्जा मिल सकता है।
सरकार राज्य के हितों से जुड़े उन मुद्दों को सुलझाने में काफी रुचि ले रही है जो पड़ौसी राज्यों से विवाद के कारण हल नहीं हो पाए हैं। इस संदर्भ में गहलोत को एक बड़ी सफलता उस समय मिली जब पंजाब ने राजस्थान के हिस्से का शेष बचा 2670 क्यूसेक पानी देना शुरू कर दिया। गौरतलब है कि 1981 में भाखड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड के साथ हुए समझौते के तहत पंजाब के हरिके बैराज से राजस्थान को रोजाना 9770 क्यूसेक पानी देना तय हुआ था, लेकिन कभी भी 7100 क्सूसेक से ज्यादा पानी नहीं दिया गया। पिछली कई सरकारों ने इसे सुलझाने की कोशिश की थी, पर सफलता नहीं मिली। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों इस बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मदद की अपील की थी। प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद राजस्थान को पूरा पानी मिलना शुरू हो गया है। इससे नहरी क्षेत्र में चार लाख हैक्टेयर सिंचाई क्षेत्र बढ़ जाएगा।
पंजाब के साथ विवाद सुलझाने के बाद गहलोत ने हरियाणा से राजस्थान के हिस्से का पानी लेने की कवायद शुरू कर दी है। इस बारे में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ गहलोत की मीटिंग भी हो चुकी है, जिसमें मामले को जल्दी सुलझाने के लिए दो सदस्यीय कमेटी बनाई गई है। हरियाणा के साथ जल ववाद पर जाएं तो पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच हुए समझौते में राजस्थान को 0।47 एमएफ पानी दिया जाना तय हुआ था, लेकिन भाखड़ा मेनलाइन के सिद्धमुख प्रोजेक्ट से राज्य को महज 0.30 एमएफ पानी मिल रहा है। मामले को हल करने के लिए कई बार वाताएं हो चुकी है, पर नतीजा सिफर ही रहा है। जहां राजस्थान अपने हिस्से को पानी देने पर अड़ा हुआ है वहीं, हरियाणा सरकार का कहना है कि राजस्थान अपने खर्चे पर सतलुज-यमुना नहर का निर्माण कर लेता है तो वह पानी देने को तैयार है। मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल में इस बाबत एक प्रस्ताव भी बनाकर भेजा था, लेकिन हरियाणा सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया।
मिशन सुशासन के तहत इन तमाम कामों को अंजाम तक पहुंचाने में गहलोत का ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि राजस्थान में उनका हाथ बंटाने वालों की कमी नहीं है। गहलोत की खिलाफत करने वालों को जिस सहज ढंग से मात मिली है, उसे देखकर शायद ही कोई विरोध करने की हिम्मत जुटा पाए। राज्य के कांग्रेसी कुनबे को अच्छी तरह समझ में आ गया है कि गहलोत के साथ चलकर ही राजनीति को परवान चढ़ाया जा सकता है। उनसे वैर लेने वालों की राजनीति का रास्ता तो रसातल की ओर ही जाता है। लिहाजा, इन दिनों उनके समर्थकों का कारवां बढ़ता ही जा रहा है। इस बीच गहलोत कांग्रेस के वोट बैंक को बनाए रखने और उसे बढ़ाने के प्रयास भी कर रहे हैं। राज्य की राजनीति में जाति के महत्व को ध्यान में रखते हुए वे आजकल विभिन्न जातियों के दिग्गज नेताओं से मेलजोल बढ़ा रहे हैं। राज्य में जातिगत सम्मेलनों की संख्या भी एकाएक बढ़ गई है। इनमें से कमोबेश सभी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उपस्थित होते हैं। अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए अल्पसंख्यक मामलात विभाग बनना पहले ही तय हो गया है। ऐसा होने से अल्पसंख्यकों के सभी मामले एक ही विभाग के अंतर्गत आ जाएंगे। फिलहाल अल्पसंख्यकों के कई विषय वित्त, कला, संस्कृति, गृह, राजस्व, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग में आते हैं। सूत्रों की मानें तो चिकित्सा मंत्री दुर्रु मियां को इसकी जिम्मेदारी दी जा रही है।
poorna zimmedaari ke saath likha gayaa aalekah..
जवाब देंहटाएंatyant saamyik,saarthak va rochak aalekh...
is umda aalekh k liye
haardik badhaai !
sir ji, kuchh jayada ho gya lagta hai. narayan narayan
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