
राज्यपाल एस.के. सिंह का निधन न केवल राजस्थान, बल्कि समूचे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर वे यह साबित करने में कामयाब रहे कि राज्यपाल का पद महज संवैधानिक प्रधान का नहीं होता। वे मुख्यमंत्री व मंत्रियों को शपथ दिलाने और राजकीय मेहमानों के स्वागत-सत्कार तक ही नहीं सिमटे, बल्कि राज्य के जनजीवन से जुडऩे में सफल रहे। इस उपक्रम में उन्होंने सरकार का विरोध झेलने से भी परहेज नहीं किया। जनहित से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी और साफगोई से बोलने का साहस उनके पास ही था। चाहे प्रदेश में शिक्षा के स्तर की बात हो या आरक्षण का मुद्दा, वे पूरी शिद्दत से सक्रिय रहे। विश्वविद्यालयों में शोध के स्तर पर वे खासे चिंतित थे। उन्होंने इसके सुधार के लिए महत्वपूर्ण सुझाव भी प्रस्तुत किए थे। शोध ही नहीं, शिक्षण पद्धति, परीक्षा प्रणाली आदि पर वे समय-समय पर मार्गदर्शन करते रहे। निजी विश्वविद्यालयों की बेतरतीब स्थापना पर उन्होंने कड़ा एतराज जताते हुए कहा था कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी। आरक्षण व्यवस्था में आई विकृतियों पर उन्होंने जो तर्क प्रस्तुत किए, उनसे असहमत तो हुआ जा सकता है, लेकिन नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वे इस मायने में भी खास थे कि वे शिकायत करने से ज्यादा ध्यान समस्या के समाधान करने पर देते थे। उनका मकसद जनमानस को उद्वेलित करने तक ही सीमित नहीं था, बल्कि वे उसे बदलाव के लिए भी तैयार करते थे। असल में उन्होंने राजस्थान के राज्यपाल रहते हुए भारतीय लोकतंत्र के इस पद की गरिमा व मान बढ़ाने के साथ-साथ इसकी प्रासंगिकता को भी सिद्ध किया।
एस. के. सिंह जहां भी रहे, उन्होंने अपने काम की छाप छोड़ी। उनकी गिनती देश के शीर्ष राजनयिकों में होती थी। विदेश सेवा में रहते हुए उन्होंने शानदार काम किया। जिस समय कश्मीर मसले पर पाकिस्तान ने राजनीति शुरू की थी, तो सिंह अमेरिका जाकर इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र को तटस्थ बनाने में न केवल कामयाब हुए, बल्कि यह आश्वासन लेने में भी सफल रहे कि संयुक्त राष्ट्र संघ शिमला समझौते का समर्थक है, जिसमें सभी मुद्दों पर द्विपक्षीय चर्चा का प्रावधान है। सिंह पाकिस्तान में सर्वाधिक समय तक राजदूत रहे, वह भी उस दौर में जब दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव चरम पर था। उन्होंने न केवल कश्मीर में पाकिस्तान की दखलंदाजी से संबंधित कई महत्वपूर्ण सूचनाएं भारत को दीं, बल्कि दोनों के संबंधों को पटरी पर लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीन को कूटनीतिक मोर्चे पर घेरने में भी उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने इस क्रम को बरकरार रखा। अरुणाचल समेत समूचे पूर्वोत्तर में आधारभूत ढांचे के विकास में उनका सक्रिय योगदान रहा। महात्मा गांधी के विचारों को अपने जीवन में आत्मसात कर उन्होंने पूरी दुनिया में मानवाधिकार के क्षेत्र में काम किया। एक मायने में उन्होंने गांधी के दूत के रूप में कार्य करते हुए गांधी दर्शन को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया। अपने काम के दम पर उन्होंने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, जॉर्डन, लेबनान व साइप्रस में भारतीय राजदूत रहते हुए इन देशों अपने अनगिनत शुभचिंतक पैदा किए। व्यापक कार्यक्षेत्र और बहुमुखी प्रतिभा के धनी एस. के. सिंह का असामयिक निधन से जो शून्य पैदा हुआ है, उसे भर पाना नामुमकिन है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें